यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 34 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || 33 ||
"हे कृष्ण! मन अत्यंत चंचल, अशांत, अत्यधिक बलवान और दृढ़ है। इसे वश में करना मैं वायु को रोकने के समान कठिन मानता हूँ।"
भगवद्गीता के इस श्लोक में यह बताया गया है कि मनुष्य के जीवन में मन का स्वभाव कितना बड़ा बाधक हो सकता है। अर्जुन के इस कथन से स्पष्ट है कि आत्मनियंत्रण और ध्यान के मार्ग में सबसे बड़ी चुनौती मन की चंचलता है। भगवान श्रीकृष्ण इसे नियंत्रित करने के उपाय आगे के श्लोकों में समझाते हैं।
चञ्चलं – चंचल, अशांत
हि – निश्चय ही, वास्तव में
मन: – मन
कृष्ण – हे कृष्ण! (भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए)
प्रमाथि – अस्थिर करने वाला, उथल-पुथल मचाने वाला
बलवत् – अत्यधिक बलवान
दृढम् – दृढ़, अटल
तस्य – उसका (मन का)
अहम् – मैं
निग्रहं – नियंत्रण, वश में करना
मन्ये – मानता हूँ
वायो: – वायु का
इव – के समान
सुदुष्करम् – अत्यंत कठिन