अचलेश्वर महादेव मंदिर एक हिन्दू मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अकालगढ़ किले के बाहर स्थित है, जो सिरोही जिले के अबू रोड तहसील, राजस्थान में में स्थित है। ऐसा माना जाता है इस मंदिर का निर्माण परमार राजवंश द्वारा 9वीं शताब्दी में किया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया था।
‘अचलेश्वर’ एक शब्द है जो संस्कृत शब्द को दर्शाता है और संस्कृत शब्द ‘अचल’ अर्थ जिसको हिलाया नहीं जा सकता है या दृृढ़ है, और ‘ईश्वर’ का अर्थ ‘भगवान’ है, जबकि ‘महादेव’ शब्द को अलग अलग करने पर महान (महा) भगवान (देव), जो भगवान शिव को दर्शाता है। वह देवता जिसे यह मंदिर समर्पित है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर कि विशेषत यह है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है परन्तु इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।
इस मंदिर में भगवान शिव के सेवाक नंदी की बहुत बड़ी मूर्ति है जिसका वजन लगभग 4 टन है। जो पांच धातुओं, सोना, चांदी, तांबे, पीतल और जस्ता से बना है। एक लोकप्रिय स्थानीय किंवदंती के अनुसार, नंदी की मूर्ति मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले से मंदिर की रक्षा करती है मंदिर में छिपे हुए मधुमक्खियों ने कई बार मंदिर को बचाया है। मंदिर में कई अन्य मूर्तियां भी हैं, जिनमें स्पॉटिक्स, एक क्वार्ट्ज पत्थर है, जो प्राकृतिक प्रकाश में अपारदर्शी दिखाई देता है, लेकिन यह क्रिस्टल जैसे पारदर्शी हो जाता है जब प्रकाश पड़ता है।
राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। पुराणों के अनुसार, वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी। कहा जाता हैं कि यहां का पर्वत भगवान शिव के अंगूठे की वजह से टिका हुआ है। जिस दिन यहां से भगवान शिव के अंगूठा गायब हो जाएगा, उस दिन यह पर्वत नष्ट हो जाएगा। यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक खड्ढा बना हुआ है। इस खड्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं, लेकिन यह कभी भरता नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है, यह आज भी एक रहस्य है। अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चैक में चंपा का विशाल पेड़ है। मंदिर में बाएं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम,बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं। मंदिर के पास तीन बड़े पत्थर भैंस की मूर्तियों के साथ एक तालाब है। माना जाता है कि ये भैंस राक्षसों का प्रतिनिधित्व करते है।