श्री शैल शक्ति पीठ हिन्दूओं के एक लिए पवित्र स्थान है जो कि भारत के राज्य, आंध्रप्रदेश के, हैदराबाद शहर से 250 किलोमीटर की दूरी पर कुर्नूल के पास स्थित है। यह मंदिर को ‘दक्षिण का कैलास’ और ‘ब्रह्मगिरि’ भी कहा जाता है। श्री शैल शक्ति पीठ के साथ भगवान शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिलिंग भी स्थित है। इस मंदिर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर भ्रमराम्बा देवी का मंदिर भी स्थित है जिसे शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को ‘महालक्ष्मी’ के रूप पूजा जाता है और भैरव को ‘संवरानन्द’ और ‘ईश्वरनन्द’ के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती का ‘ग्रीवा का हिस्सा’ इस स्थान पर गिरा था।
श्री शैल शक्ति पीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।