शनि जयंती हिन्दू धर्म के लिए एक महत्वूपर्ण दिन होता है। शनि जयंती हिन्दू कैलेण्डर की ज्येष्ट माह की अमावास्या के दिन मनाया जाता है। शनि एक हिन्दूओं के एक देवता है जो कि न्याय के देवता के रूप में जाने जाते है। शनि देव भगवान सूर्य तीन संतानों में से एक है - यम, यमुना और शनि।
शनि देव का जन्म भगवान सूर्य क पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि देव भगवान शिव के भक्त थे और भगवान शिव ने ही उन्हें वरदान दिया कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा। मानव क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।
शनि देव अपने प्रभावों के कारण सर्वाधिक ध्यान आकर्षित करने वाले देवता है। वे मित्र भी हैं और शत्रु भी। उन्हें मारक, अशुभ और दुरूखकारक माना जाता है तो वे मोक्ष प्रदाता भी हैं। जो लोग अनुचित व्यवहार करते हैं वे उन्हें दंड देते हैं और जो परहित के कार्यों में संलग्न रहते हैं, उन्हें समृद्धि का वर देते हैं।
शनि देव का न्याय पूरे संसार में प्रसिद्ध है। शनि देव को मंदगामी, सूर्चपुत्र और शनिश्वर जैसे अनेकों नामों से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है - राजा हरिश्चंद्र को शनि देव ने काफी दंड दिए थे। क्योंकि राजा हरिश्चंद्र का अपने दान देने का गर्व हो गया था। जिसके कारण राजा हरिश्चंद्र को सपत्नीक बाजार में बिकना पड़ा और श्मशान में चैकीदार का कार्य करना पड़ा था। राजा नल और दमयन्ती को भी शनि के प्रभाव के कारण ही अपने पापों के दंड स्वरूप जगह-जगह भटकना पड़ा।
ज्योतिषाचर्यों के अनुसार, जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती चल रही है उन लोगों को शनि जयंती के दिन शनिदेव की पूजा अराधना करना जरूरी माना गया है। माना जाता है कि इस दिन पूजा -अर्चना और दान करने से शनि शांत होते हैं, और प्रभावित जातक के कष्ट दूर करते हैं।
शनि जयंती, भारत के राज्य महाराष्ट के एक गांव शनि शिंगणापुर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है और यह गांव शनि देव के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है।
शनिदेव को मकर राशि और कुंभ राशि का स्वामी माना गया है। बुध और शुक्र को शनिदेव के मित्र माना गया है जबकि सूर्य, चंद्रमा और मंगल को इनका शत्रु माना गया है। वहीं गुरु से इनका संबंध समभाव का है।
नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि पर सबसे ज्यादा समय तक विराजमान रहता है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है। कोई भी दूसरा ग्रह राशि इतने लंबे समय तक नहीं रहता है। सूर्य, चन्द्र, मंगल शनि के शत्रुग्रह माने जाते हैं जबकि बुध और शुक्र मित्र ग्रह। गुरु सम ग्रह है।
लग्न में बैठा शनि ठीक नहीं होता है और जातक को कष्ट देता है। अगर अंक शास्त्र की बात की जाए तो 8 का अंक शनि का माना जाता है। अगर किसी भी व्यक्ति की जन्म तारीख के अंकों का योग 8 है तो उसके अंकाधिपति शनिदेव होंगे। अगर जातक का जन्म 8, 17, 26 तारीख को हुआ है तो अंकाधिपति शनिदेव हैं। ऐसे में उन्हें प्रसन्ना करके उनकी कृपा प्राप्त करना जातक के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
शनिदेव की कुपित दृष्टि से बचने के लिए काले कपड़े, जामुन फल, उड़द दाल, काले जूते और काली वस्तुओं का दान करना चाहिए। प्रत्येक शनिवार को शनि दर्शन का भी महत्व है। दान देने से शनिदेव प्रसन्ना होते हैं और कृपा करते हैं। हनुमानजी की पूजा अर्चना से भी शनिदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। दान करने से पहले भी ज्योतिर्विदों की सलाह लेना अधिक फलदायक हो सकता है और कष्टों से मुक्ति दिलाता है।