"कृष्ण अष्टोत्तर शतनामावली" हिंदू धर्म में एक प्रतिष्ठित भक्ति पाठ है जिसमें भगवान कृष्ण के 108 नाम (शतनाम) शामिल हैं। प्रत्येक नाम भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व के एक विशिष्ट दिव्य गुण, विशेषता या पहलू को समाहित करता है। इन नामों का स्मरण करना पूजा का एक रूप है और भगवान कृष्ण के दिव्य सार से जुड़ने का एक साधन है। माना जाता है कि इन नामों के जाप से भगवान कृष्ण का आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त होता है।
"कृष्ण अष्टोत्तर शतनामावली" का महत्व भक्तों को भगवान कृष्ण के अस्तित्व के विभिन्न आयामों पर ध्यान करने में मदद करने की क्षमता में निहित है। ये नाम एक दिव्य प्रेमी, एक चंचल बच्चे, एक रक्षक, एक दार्शनिक और सारी सृष्टि के सर्वोच्च स्रोत के रूप में उनकी भूमिकाओं को शामिल करते हैं। इन नामों का भक्तिपूर्वक जप करना कृष्ण के स्वभाव के बारे में अपनी समझ को गहरा करने और उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने का एक तरीका माना जाता है।
ये नाम भगवान कृष्ण के विभिन्न दिव्य गुणों और पहलुओं को समाहित करते हैं, जिनमें से प्रत्येक उनकी बहुमुखी प्रकृति और हिंदू धर्म में भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
108 नामों का जाप एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में कार्य करता है जो एकाग्रता, ध्यान और श्रद्धा की भावना को बढ़ावा देता है। इन नामों को दोहराकर, भक्त प्रत्येक नाम से जुड़े दिव्य स्पंदनों में डूब जाते हैं, जिससे दिव्य उपस्थिति का माहौल बनता है और भगवान कृष्ण के साथ निकटता की भावना पैदा होती है।
भक्त अक्सर अपनी दैनिक प्रार्थनाओं, ध्यान, या भक्ति प्रथाओं के दौरान "कृष्ण अष्टोत्तर शतनामावली" का पाठ करते हैं। इसका पाठ विशेष अवसरों, भगवान कृष्ण को समर्पित त्योहारों, या दैवीय हस्तक्षेप और आशीर्वाद प्राप्त करने के समय भी किया जा सकता है।