भगवान विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली - परम भगवान के 108 नाम

विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली: भगवान विष्णु के दिव्य गुणों का सम्मान करना

हिंदू आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, "विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" 108 नामों का एक श्रद्धेय संकलन है जो भगवान विष्णु के दिव्य सार और बहुमुखी प्रकृति को समाहित करता है। यह पवित्र पाठ भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है, जो सर्वोच्च सत्ता से जुड़ने, आशीर्वाद पाने और उनके आध्यात्मिक संबंध को गहरा करने के साधन के रूप में कार्य करता है। आइए "विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" के महत्व, प्रतीकवाद और आध्यात्मिक शक्ति पर गौर करें।

दैवीय गुणों को अपनाना

"विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" के नाम केवल लेबल नहीं हैं, बल्कि गहरे अर्थों से बुनी गई एक काव्यात्मक श्रृंखला हैं। प्रत्येक नाम भगवान विष्णु के व्यक्तित्व के एक अनूठे पहलू को उजागर करता है, जो ब्रह्मांड के संरक्षक और पालनकर्ता के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है। सभी प्राणियों के आश्रय का प्रतीक "नारायण" से लेकर उनके तीन शक्तिशाली कदमों का प्रतिनिधित्व करने वाले "त्रिविक्रम" तक, प्रत्येक नाम भगवान विष्णु को परिभाषित करने वाले दिव्य गुणों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

जप के माध्यम से गहरा संबंध

"विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" का पाठ केवल एक मौखिक अभ्यास नहीं है; यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो दिल और दिमाग को जोड़ती है। भक्तिपूर्वक इन नामों का जाप भगवान विष्णु के साथ गहरे संबंध का द्वार खोलता है। जैसे ही भक्त इन नामों को दोहराते हैं, वे खुद को दिव्य कंपन में डुबो देते हैं, जिससे पवित्रता का माहौल बनता है जो परमात्मा की उपस्थिति को आमंत्रित करता है।

विष्णु के अवतारों की श्रृंखला

ये नाम भगवान विष्णु के अवतारों की याद भी दिलाते हैं, जिन्हें अवतार के रूप में जाना जाता है, जिनमें भगवान राम और भगवान कृष्ण जैसी प्रतिष्ठित शख्सियतें शामिल हैं। प्रत्येक अवतार का एक अनूठा उद्देश्य होता है, जो मानवता को धार्मिकता और आध्यात्मिक विकास की ओर मार्गदर्शन करता है। "विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" इन अवतारों के कालातीत कारनामों और शिक्षाओं को दर्शाती है, जो भक्तों के जीवन में उनके महत्व को मजबूत करती है।

भगवान विष्णु के 108 नाम, जिन्हें विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली के नाम से जाना जाता है

  1. विष्णु
  2. नारायण
  3. वासुदेव
  4. त्रिविक्रम
  5. वामन
  6. श्रीधर
  7. हृषिकेश
  8. पद्मनाभ
  9. दामोदरा
  10. संकर्षण
  11. प्रद्युम्न
  12. अनिरुद्ध
  13. पुरूषोत्तम
  14. अच्युत
  15. गोविंदा
  16. माधव
  17. हरिवंश पर्व
  18. केशव
  19. जनार्दन
  20. नारायण
  21. पद्मनिधि
  22. पद्मनाभ
  23. शंख-चक्र-गदा-धारा
  24. देवकीनन्दना
  25. राम अ
  26. कृष्णा
  27. उपेन्द्र
  28. गोपाल
  29. जगन्नाथ
  30. यादव
  31. मधुसूदन
  32. नृसिंह
  33. अच्युत
  34. जनार्दन
  35. हृषिकेश
  36. पद्मनाभ
  37. दामोदरा
  38. त्रिविक्रम
  39. वामन
  40. श्रीधर
  41. राम अ
  42. कृष्णा
  43. केशव
  44. गोविंदा
  45. विष्णु
  46. नारायण
  47. वासुदेव
  48. संकर्षण
  49. प्रद्युम्न
  50. अनिरुद्ध
  51. पुरूषोत्तम
  52. सर्वप्रहरणायुध
  53. वनमाली
  54. शंख-भृत
  55. चक्रभृत
  56. गदगराज
  57. अधोक्षज
  58. नरसिंह
  59. नृहरि
  60. अच्युत
  61. जनार्दन
  62. केशव
  63. मधुसूदन
  64. गोविंदा
  65. विष्णु
  66. त्रिविक्रम
  67. वामन
  68. श्रीधर
  69. हृषिकेश
  70. पद्मनाभ
  71. दामोदरा
  72. संकर्षण
  73. प्रद्युम्न
  74. अनिरुद्ध
  75. पुरूषोत्तम
  76. गोविंदा
  77. माधव
  78. राम अ
  79. कृष्णा
  80. उपेन्द्र
  81. गोपाल
  82. जगन्नाथ
  83. यादव
  84. मधुसूदन
  85. नृसिंह
  86. अच्युत
  87. जनार्दन
  88. हृषिकेश
  89. पद्मनाभ
  90. दामोदरा
  91. त्रिविक्रम
  92. वामन
  93. श्रीधर
  94. राम अ
  95. कृष्णा
  96. केशव
  97. गोविंदा
  98. विष्णु
  99. नारायण
  100. वासुदेव
  101. संकर्षण
  102. प्रद्युम्न
  103. अनिरुद्ध
  104. पुरूषोत्तम
  105. सर्वप्रहरणायुध
  106. वनमाली
  107. शंख-भृत
  108. चक्रभृत

ये नाम भगवान विष्णु के विभिन्न दिव्य गुणों, गुणों और पहलुओं को दर्शाते हैं, जो हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के संरक्षक और पालनकर्ता के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाते हैं।

आशीर्वाद और सुरक्षा की मांग

भगवान विष्णु से आशीर्वाद, मार्गदर्शन और सुरक्षा पाने के लिए भक्त अक्सर "विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" की ओर रुख करते हैं। यह आस्था पर आधारित एक अभ्यास है, जहां व्यक्ति परमात्मा की सर्वव्यापकता को स्वीकार करते हैं और जीवन की चुनौतियों और अनिश्चितताओं से निपटने के लिए उनकी कृपा की तलाश करते हैं।

त्योहारों और पूजा का अभिन्न अंग

"विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" का पाठ भगवान विष्णु को समर्पित विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और अनुष्ठानों में अपना स्थान पाता है। विष्णु-केंद्रित त्योहारों या व्यक्तिगत पूजा जैसे अवसरों के दौरान, यह अभ्यास भक्तिपूर्ण माहौल को बढ़ाता है और भक्त और परमात्मा के बीच संबंध को गहरा करता है।

आध्यात्मिक उत्थान और आंतरिक शांति

"विष्णु अष्टोत्तर शतनामावली" में दिव्य नामों का जाप आध्यात्मिक उत्थान की ओर एक यात्रा है। जैसे ही मन इन पवित्र अक्षरों के साथ जुड़ता है, यह सांसारिक विकर्षणों से दूर हो जाता है और आंतरिक शांति, आध्यात्मिक विकास और आत्म-खोज की ओर ले जाता है।



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