यत्राभ्यागवदानमान चरण प्रक्षालनं भोजन।
सत्सेघा पितृदेवार्चंन विधिः सत्यंगवां पालनम्।।
धान्यानामपि सग्रहो न कलहिश्चत्ता तृरू पा प्रिया।
दृष्टा प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन गृहे निष्फला।।
भावार्थ - जहां मेहमान की आव-भगत करने में आती है... उनको भोजन कराया जाता है, जहां सज्जनों की सेवा की जाती है, जहां निरंतर भाव से भगवान की पूजा और अन्य धर्मकार्य किए जाते हैं, जहां सत्य का पालन किया जाता है, जहां गलत कार्य नहीं होते, जहां गायों की रक्षा होती है, जहां दान देने के लिए धान्य का संग्रह किया जाता है, जहां क्लेश नहीं होता, जहां पत्नी संतोषी और विनयी होती है, ऐसी जगह पर मैं सदा निश्चल रहती हूँ। इनके सेवा की जगह पर कभी कभार दृष्टि डालती हूँ।