कार्तिक शुक्ल अष्टमी गोपाष्टमी के नाम से जानी जाती है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण और गायों को समर्पित है। यह मथुरा, वृंदावन और अन्य ब्रज क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है। इस दिन गायों को उनके बछड़े के साथ सजाने और पूजा करने की परंपरा है। आज के दिन श्रीकृष्ण के पिता नंद महाराज ने श्रीकृष्ण को गायों की देखभाल की जिम्मेदारी दी थी और श्रीकृष्ण गायों को चराने वन ले गये थे।
नंद महाराज ने वृंदावन में पहली बार गाय चराने जाते समय भगवान कृष्ण और बलराम के लिए एक समारोह आयोजित करने का फैसला किया। राधा, भगवान कृष्ण की दिव्य पत्नी, गायों को चराना चाहती थीं, लेकिन उन्हें लड़की होने से मना कर दिया गया था। इसलिए, सुबाला-सखा के समान होने के कारण, उसने खुद को एक लड़के के रूप में प्रच्छन्न किया, उसने अपनी धोती और वस्त्र पहन लिए और अपने साथियों के साथ गाय पालने के लिए भगवान कृष्ण के साथ मौज-मस्ती के लिए शामिल हो गईं। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र देव का घमंड तोड़ा था।
इस दिन प्रातः काल गौओं को स्नान कराकर बछड़े सहित जल, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र तथा धूप-दीप से आरती उतारते हैं। अगर घर में गाये न हो तो गोशाला में जाना चाहिए ओर गायों की सेवा आदि करनी चाहिए।
भक्तों द्वारा विशेष अनुष्ठान करने से पहले गायों को कपड़े और आभूषणों से सजाया जाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए विशेष चारा खिलाया जाता है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है।
इस दिन, एक अच्छे और सुखी जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदक्षिणा के साथ श्री कृष्ण पूजा और गाय पूजा की जाती है। दैनिक जीवन में गायों की उपयोगिता के लिए भी भक्त उनका विशेष सम्मान करते हैं। गायें दूध प्रदान करती हैं जो एक माँ की तरह लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने में मदद करती हैं। यही कारण है कि गायों को पवित्र माना जाता है और हिंदू धर्म में मां के रूप में पूजा की जाती है। गाय की महिमा और उसकी सुरक्षा की चर्चा वरिष्ठ भक्तों द्वारा की जाती है। वे सभी गायों को चराते हैं और गोशाला के पास भोज में भाग लेते हैं।
सायंकाल गायों के जंगल से वापिस लौटने पर साष्टांग प्रणाम कर उनकी चरण रज से तिलक लगाना चाहिए।