भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी बछवास के रूप में मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ मूँग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्याह्न के समय बछड़े को खिलाती हैं। व्रती भी इस दिन उपरोक्त अन्न का ही सेवन करता है। इस दिन गाय का दूध, दही वर्जित है। सर्वत्र भैंस का दूध ही प्रयोग किया जाता है।
भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बछवारस के अतिरिक्त ओक दुआस या बलि दुआदसी या वत्स दुआदशी के रूप में भी मनाते हैं। यह व्रत पुत्र कामना के लिया किया जाता है। इसे पुत्रवती स्त्रियाँ ही करती हैं। इस दिन बछवारस पर्व की भांति अंकुरित मोठ, मूँग तथा चने आदि चढ़ाए जाते हैं। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग का विशेष माहात्म्य है। एक दलीय अन्न तथा गौ दुग्ध वर्जित है।
श्रीकृष्ण, कृष्ण पक्ष की द्वादशी को पहल बार जंगल में गौएं-बछड़े चराने हेतु गए। माता यशोदा ने श्रीकृष्ण को पूरी तरह सजाकर गौएँ चराने के लिए भेजा था। पूजा पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े खोल दिए। यशोदा ने बलराम से कहा, ‘बछड़ों को चराने दूर मत जाना। श्रीकृष्ण को अकेले मत छोड़ना।’ गोपाल द्वारा गोवत्साचारण की इस पुण्य तिथि को पर्व के रूप में मनाया जाता हैं।