हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण व्रतों में आता है और इस व्रत का विशेष स्थान होता है। विशेष स्थान इसलिए होता है क्योंकि एकादशी व्रत का सम्बन्ध भगवान श्रीविष्णु से होता है। एकादशी व्रतों में से एक है, कामिका एकादशी व्रत। यह व्रत श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में आती है।
ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य कामिका एकादशी में भगवान श्रीविष्णु का पूजन करता है, तो सभी देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। इसलिए कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।
जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
एकादशी के किसी भी व्रत में चावल व चावल से बनी किसी भी चीज के खाना पूर्णतया वर्जित होता है। फलाहार भी केवल दो समय ही करें। फलाहार में तुलसी दल का अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए। व्रत में पीने वाले पानी में भी तुलसी दल का प्रयोग करना उचित होता है।
एकादशी के व्रत में व्रती व्यक्ति प्रातः स्नानादि करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को सबसे पहले गंगलजल से स्नान कराना चाहिए। उसके बाद पंचामृत से स्नान करायें। पंचामृत बनाने के लिए दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का उपयोग करना चाहिए। स्नान कराने के बाद भगवान को गंध, अच्छत इंद्र जौ का प्रयोग करे और पुष्प चढ़ायें।
नैवेधय का भोग लगाये। इसमें भगवान श्रीधर को मक्खन मिश्री और तुलसी दल अवश्य ही चढ़ाएं और अन्त में श्रमा याचन करते हुए भगवान को नमस्कार करें। विष्णु सहस्त्र नाम पाठ का जाप अवश्य करना चाहिए। धूप, दीप, चंदन आदि सुगंधित पदार्थो से भगवान श्रीविष्णु की पूजा व आरती उतारें और कामिका एकादशी की कथा सुनें।
एक गांव में एक वीर श्रत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राहमण से हाथापाई हो गई और ब्राहमण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस श्रत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
इस पर श्रत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राहमणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पश्र की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने श्रत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।