श्रावण मास की पूर्णिमा हिन्दुओं के लिए विशेष दिन होता है। श्रावण व सावन का महीना हिन्दु धर्म में बेहद विशेष मास होता है। सावन का महीना भगवा श्रीकृष्ण को भी बहुत प्रिय है इसलिए सावन का महीनो विशेष होता है और सावन व श्रावण मास की पूर्णिमा बहुत विशेष होती है। अग्रंेजी कलेण्डर के अनुसार यह जुलाई या अगस्त में आता है।
भारत में श्रावण मास की पूर्णिमा को अगल अगल नाम से पूजा व जाना जाता है। श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारली व नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षा बंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। हमारे त्योहारों की यही विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।
दक्षिण भारत के राज्य महाराष्ट्र, विशेष रूप से मुंबई और कोंकण तट के आसपास हिंदू मछली पकड़ने वाले समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक औपचारिक दिन है। यह हिंदू महीने श्रावण की पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। इस दिन समुद्र और जल के देवता, भगवान वरुण को चढ़ाए जाने वाले चावल, फूल और नारियल जैसे प्रसाद।
पश्चिमी घाट पर रहने वाले लोगों का एकमात्र आधार समुद्र ही है।यह समय मानसून की वापसी का होता है इस कारण समुद्र भी शांत होता है। मछुआरे अपनी-अपनी नावों को सजाकर समुद्र के किनारे लाते हैं। वरुण देवता को नारियल अर्पित कर प्रार्थना करते हैं ताकि उनका जीवन निर्वाह अच्छे से हो।
नारियल इसलिए अर्पित किया जाता है क्योंकि नारियल की तीन आँखे होने के कारण उसे शिव का प्रतीक माना जाता है। हमारे देश में किसी भी काम की शुरूआत से पहले भगवान को नारियल अर्पित करना उनसे आशीर्वाद लेने तथा उन्हें धन्यवाद देने का सबसे प्रचलित तरीका है।
तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा और महाराष्ट्र के ब्राह्मण जो कि यजुर्वेद को पढ़ते है वे इस दिन को अवनी अवित्तम के रूप में मनाते हैं। इस दिन ब्राह्मण द्वारा पुराने पापों से छुटकारे पाने के लिए महासंकल्प लिया जाता है। ब्राह्मण स्नान करने के बाद नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
उपक्रमम का अर्थ होता है शुरूआत। इसी दिन से यजुर्वेदी ब्राह्मण अगले छः महीने तक यजुर्वेद पढ़ने की शुरूआत करते हैं। यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय मिथकों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने ज्ञान के देवता हयाग्रीव के रूप में अवतार लिया था।
कजरी पूर्णिमा को मध्य भारत में खासकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में मनाया जाता है। श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन यानी कि कजरी नवमी से उसकी तैयारी शुरु हो जाती है। यह त्योहार पुत्रवती महिलाएँ मनाती हैं। कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में खेत से मिट्टी भरकर लाती हैं। इसमें जौ को बोया जाता है।
कजरी पूर्णिमा के दिन सारी महिलाएँ इन जौ को सिर पर रखकर शोभा यात्रा निकालती हैं और पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित कर देती हैं। महिलाएँ इस दिन उपवास रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं।
गुजरात में शिव भगवान की उपासना बड़े जोर-शोर से होती है। श्रावण पूर्णिमा में भगवान शिव को जल चढ़ाना बहुत विशेष माना जाता है और इस दिन शिव जी का पूजन भी होता है। पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया (गाय के घी, दुध, दही आदि) में डुबाकर शिव को अर्पित की जाती हैं।
अयोध्या और प्रयागराज में कुशनभवपुर दिवस के रूप में श्रावण पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन काल में सुल्तानपुर को कुशनभवपुर दिवस के नाम से जाना जाता था और यहीं पर श्रावण पूर्णिमा को कुशनभवपुर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।