सिंधारा दूज हिन्दूओं को एक प्रसिद्ध त्योहार है यह त्योहार विशेषकर महिलाओं को होता है। सिंधारा दूज श्रावण मास में चन्द्रमा की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है और हरियाली तीज से एक दिन पहले और हरियाली अमावस्या के दो दिन बाद मनाया जाता है। उत्तर भारत में पंचांगों और हिंदी कैलेंडर में यह दिन शुभ है।
सिंधारा दूज के दिन हिन्दूओं में बहू-बेटियों के घर सिंधारा भेजा जाता है। सिंधारा दूज का महत्व सुहागिनों के लिए बहुत मायने रखता है। सिंधारा में मिठाई और श्रृंगार के सामान और परिधानों की एक भेंट होती हैं। यदि बेटी ससुराल में होती है तो मायके से सिंधारा भेजा जाता है और यदि बहू मायके गई हो तो ससुराल से सिंधारा जाता है। ससुराल से सिंधारा बहू को शादी के पहले वर्ष ही दिया जाता है। ज्यादातर सिंधारा बेटी को उसके मायके से ही दिया जाता है। सिंधारा दूज के दिन ही यह भेंट दी जाती है। इसलिए इस दिन का सुहागिनों के लिए खास महत्व होता है। सिंधारा में आई मेहंदी को सुहागने अपने हाथों में रचाती हैं और अगले दिन तीज का व्रत करती हैं।