बसौड़ा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। शीतला अष्टमी को ’बसौड़ा पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। बसौड़ा पूजा, शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है। यह त्योहार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ता है लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं।
बसौड़ा या शीतला अष्टमी का यह त्योहार उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक लोकप्रिय है। राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर मेलां व लोक संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। भक्त इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस चुने हुए दिन पर व्रत रखने से उन्हें कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है।
बसौड़ा रिवाज के अनुसार इस दिन कोई खाना नहीं बनाया जाता है। इसलिए अधिकांश परिवार शीतला अष्टमी के दिन एक दिन पहले खाना बनाते हैं और बासी भोजन का सेवन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला चेचक, चेचक, खसरा आदि को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों के प्रकोप को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।
बसौड़ा या शीतला अष्टमी के दिन भक्त सूर्यादय से पहले स्नान करते हैं। शीतला देवी मंदिर जाते हैं और ’हल्दी’ और ’बाजरे’ से देवी की पूजा करते हैं। पूजा अनुष्ठान करने के बाद वे ’बसौड़ा व्रत कथा’ सुनते हैं। इसके बाद देवी शीतला को ’राबड़ी’, ’दही’ और अन्य आवश्यक प्रसाद चढ़ाया जाता है। लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद भी लेते हैं।