अमावस्या का दिन हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह वह दिन होता है जिस दिन चन्द्रमा पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देता है। पूरे वर्ष में की एक अमावस्या का दिन होता है जिसे महालय अमावस्य कहा जाता है। महालय अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या, पितृ मोक्ष अमावस्या या पितृ अमावस्या भी कहा जाता है। यह वह दिन होता है जब हिन्दू की एक परंपरा श्राद्ध का अन्तिम दिन होता है। इस दिन यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों के मृत्यु का दिन नहीं पता होता है तो वह अपने पूर्वजों का श्राद्ध संस्कार महालय अमावस्या के दिन कर सकता है।
इस दिन कियें जाने वाला समारोह, मृत्यु संस्कार को श्राद्ध या तर्पण के रूप में जाना जाता है। दक्षिणी और पश्चिमी भारत में, यह भाद्रपद (सितंबर) के हिंदू चंद्र महीने के दूसरे पक्ष (पखवाड़े) में पड़ता है और गणेश उत्सव के तुरंत बाद पखवाड़े का पालन करता है। यह प्रतिपदा से शुरू होता है, जो अमावस्या के दिन समाप्त होता है जिसे सर्वपितृ अमावस्या, पितृ अमावस्या, पेद्दाला अमावस्या, महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
महालय अमावस्या के दिन पितृ विदा होते हैं, इसलिए इस दिन को पितृ विसजिंनी अमावस्या भी कहा जाता है। अपने पूर्वजों का श्राद्ध संस्कार व पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि हमारे पूर्वज तृप्त और खुश रहते है और आर्शीवाद देते है, जिससे परिवार में सुख, ऐश्वर्य और सुख शांति बनी रहती है।