वनवास के बाद श्रीराम के राज्याभिषेक के समय क्यों हंसे थे लक्ष्मण?

रामायण की कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसमें कई ऐसे प्रसंग हैं, जो रहस्यमयी और ज्ञानवर्धक हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है जब श्रीराम के वनवास के बाद उनके राज्याभिषेक के समय लक्ष्मण हंसे थे। उर्मिला की यह कहानी वाल्मीकि रामायण या रामचरितमानस में नही पाई जाती है। लेकिन इसे खासकर दक्षिण भारत की रामकथाओं में प्रस्तुत किया गया है, वह और भी दिलचस्प है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत में रामायण की परपंरा कितनी विशाल और कल्पनशील है। इस घटना के पीछे का कारण जानना रोचक है और इससे जुड़े कई महत्वपूर्ण संदर्भ हैं।

लक्ष्मण की भूमिका और त्याग

लक्ष्मण, श्रीराम के अनुज, उनकी भक्ति और सेवा के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने श्रीराम के साथ वनवास के कठिन समय में अपना कर्तव्य निभाया। राम के वनवास के दौरान, लक्ष्मण ने दिन-रात सेवा की और अपने आराम का त्याग किया। वे अपनी पत्नी उर्मिला को भी छोड़कर श्रीराम और सीता के साथ वन में गए थे।

लक्ष्मण का यह त्याग इस बात का प्रतीक था कि वे अपने बड़े भाई राम के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। 14 वर्षों तक उन्होंने अपने भाई की सेवा में हर प्रकार की कठिनाई का सामना किया। उनकी निष्ठा और भक्ति ने उन्हें विशेष स्थान दिलाया।

उर्मिला का त्याग और बलिदान

लक्ष्मण के वनवास जाने के बाद उनकी पत्नी उर्मिला ने भी अपना कर्तव्य निभाया। उर्मिला ने लक्ष्मण के बिना वनवास के दौरान कठिन समय बिताया, लेकिन उन्होंने लक्ष्मण को अपनी सेवा में पूरी तरह समर्पित रहने की अनुमति दी। वह उनकी अनुपस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करती रहीं और उनके लौटने का इंतजार किया।

पौराणिक कथा के अनुसार, लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान सोना छोड़ दिया था और लक्ष्मण की नींद की जिम्मेदारी उर्मिला ने ले ली थी, ताकि लक्ष्मण को वनवास के दौरान कष्ट न हो। वह अपनी भक्ति और त्याग के लिए जानी जाती हैं।

लक्ष्मण की हंसी का रहस्य

श्रीराम के राज्याभिषेक के समय, जब राम वापस अयोध्या लौटे और उनका राज्याभिषेक होने वाला था, तब लक्ष्मण हंस पड़े। इस हंसी का कारण था कि उन्होंने अपने जीवन में इतना बड़ा त्याग किया, लेकिन उनके इस त्याग को लोग भूल गए और उर्मिला के बलिदान को भी नजरअंदाज कर दिया गया। लक्ष्मण की हंसी इस बात का प्रतीक थी कि समाज की दृष्टि में केवल बड़े कृत्य ही ध्यान आकर्षित करते हैं, जबकि व्यक्तिगत बलिदान की ओर ध्यान नहीं जाता।

समाज की दृष्टि

इस घटना के माध्यम से लक्ष्मण ने यह संदेश दिया कि समाज अक्सर बाहरी कृत्यों को ही महत्व देता है, जबकि आंतरिक त्याग और समर्पण को अनदेखा करता है। यह कथा आज के समाज के लिए भी प्रासंगिक है, जहां बाहरी सफलता और शोहरत को महत्व दिया जाता है, जबकि त्याग और समर्पण को महत्व नहीं मिलता।

श्रीराम के राज्याभिषेक के समय लक्ष्मण की हंसी के पीछे छिपी भावना हमें त्याग, निष्ठा और समर्पण का महत्व सिखाती है। लक्ष्मण और उर्मिला का त्याग हमें बताता है कि किसी भी रिश्ते में विश्वास, प्रेम और बलिदान का महत्व कितना महत्वपूर्ण होता है। यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने जीवन में हर एक व्यक्ति के योगदान का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह दिखने में छोटा ही क्यों न लगे।







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