हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। शिवलिंग पर कई प्रकार की वस्तुएँ चढ़ाई जाती हैं, लेकिन शंख का प्रयोग भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है। इसके पीछे कई धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण हैं। आइए, इन कारणों को विस्तार से समझते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंख का संबंध असुरों से है। एक कथा के अनुसार, एक असुर शंखचूड़ ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का वध किया और उसके शरीर से शंख उत्पन्न हुआ। शंखचूड़ दानव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था, जिसे राधा ने दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था। इसलिए लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। लेकिन शिव ने उसका वध किया था तो शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसलिए शिव पूजा में शंख का उपयोग वर्जित माना गया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शंख का प्रयोग मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है। शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है और इसका प्रयोग विष्णु पूजा और लक्ष्मी पूजा में शुभ माना जाता है। भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग करना धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं माना जाता, क्योंकि यह विष्णु के प्रतीक का शिव के पूजन में उपयोग होता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शंख का ध्वनि कंपन और उसकी ऊर्जा भगवान शिव की पूजा के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती। शिव पूजा में शांति, एकाग्रता और ध्यान का विशेष महत्व होता है, जबकि शंख की ध्वनि ऊर्जा को विक्षेपित करती है, जिससे पूजा का माहौल प्रभावित हो सकता है।
धार्मिक शास्त्रों और पुराणों में स्पष्ट रूप से शंख का प्रयोग भगवान शिव की पूजा में वर्जित बताया गया है। शिव पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, शिवलिंग पर शंख से जल अर्पित करने या शंख बजाने से पूजा का पुण्य नष्ट हो जाता है और यह अशुभ माना जाता है।
भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग वर्जित होने के पीछे धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण हैं। इस मान्यता का पालन करते हुए भक्तगण भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं करते और उन्हें बेल पत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित करते हैं। इस प्रकार, धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करते हुए हम सही विधि से भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।