अहिंसा परमो धर्मस्त्थाहिंसा परो दमः |
अहिंसा परमं दानम् अहिंसा परम तपः ||
अहिंसा परमो यज्ञस ततस्मि परम फलम् |
अहिंसा परमं मित्रम अहिंसा परमं सुखम् ||
यह श्लोक महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 117 – दानधर्मपर्व में लिखा गया है। इसका अर्थ इस प्रकार हैः-
इसका अर्थ है की अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है | वही उत्तम इन्द्रिय निग्रह है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ दान है , वही उत्तम तप है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ यज्ञ है और वही परमोपलब्धि है | अहिंसा ही परममित्र है , और वही परम सुख है |