भगवद गीता अध्याय 6, श्लोक 18

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 17 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते |
नि:स्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ||18||

हिंदी अनुवाद है:

"जब किसी व्यक्ति का मन पूरी तरह से नियंत्रित होकर आत्मा में स्थित हो जाता है, और वह व्यक्ति सभी सांसारिक इच्छाओं से मुक्त हो जाता है, तभी उसे योगी कहा जाता है।"

यह श्लोक एक सच्चे योगी की स्थिति की व्याख्या करता है, जिसका मन नियंत्रित है और जो सांसारिक इच्छाओं से अलग है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

यदा - जब
विनियतं - नियंत्रित
चित्तम् - मन (मन: स्थिति)
आत्मनि - आत्मा में, आत्म-स्वरूप में
एव - ही
अवतिṣ्ठते - स्थित हो जाता है
नि:स्पृहः - बिना इच्छा के, सभी इच्छाओं से मुक्त
सर्वकामेभ्यः - सभी प्रकार की इच्छाओं से
युक्तः - एकीकृत, योगी
इति - ऐसा
उच्यते - कहा जाता है
तदा - तब





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