गोपीनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले, गोपेश्वर गांव में स्थित है। जो अब गोपेश्वर शहर का हिस्सा है। यह मंदिर भगवान शिव पूर्णतयः समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भारत के प्राचीन मंदिरों में इस मंदिर का नाम आता है, और भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में भी आता है। मंदिर के अन्दर स्वयंभू शिव लिंग है।
यह मंदिर उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के दौरान देखा जा सकता है। यह मंदिर अनेक धार्मिक मान्यता से जुड़ा हुआ है। हिन्दू की धार्मिक पुराणों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। मंदिर की अपनी वास्तु कला अभुत है। इस मंदिर में एक शानदार गुबंद और लगभग 30 वर्ग फुट का गर्भगृह है। मंदिर के इस गर्भगृह में 24 दरवाजों के द्वारा जा सकता है। स्थापत्य शैली के आधार पर मुख्य मंदिर का निर्माण 9वीं व 11वीं ईसवीं के मध्य तथा संभवतया कत्यूरी शासकों द्वारा किया गया।
मंदिर के चारों ओर टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष प्राचीन काल में कई और मंदिरों के अस्तित्व की गवाही देते हैं। मंदिर के प्रांगण में एक त्रिशूल है, लगभग 5 मीटर ऊँचा, आठ विभिन्न धातुओं से बना है, जो 12 वीं शताब्दी का है। यह नेपाल के राजा, अनीकमल्ला के लिए शिलालेख का दावा करता है, जिसने 13 वीं शताब्दी में शासन किया था। मंदिर के आंगन में भगवान शिव का एक त्रिशूल है जो लगभग 5 फुट ऊंचा और अष्ट धातुओं से बना है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव अपनी तपस्या कर रहें थे। तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव ने कामतीर से भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी। भगवान शिव ने क्रोध वश होकर कामदेव को त्रिशुल से भस्म कर दिया था।
इस मंदिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएं विराजमान हैं. मंदिर के निर्माण में भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है मंदिर से कुछ दूरी पर वैतरणी नामक कुंड स्थापित है जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है. सभी तीर्थ यात्री इस पवित्र स्थल के दर्शन प्राप्त करके परम सुख को पाते हैं।