हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है। निर्जला एकादशी के व्रत में पानी पीना वर्जित होता है अर्थता पूरे व्रत में एक बूंद पानी भी नहीं पीया जाता है। इसलिए इसे एकादशी हो निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है जिसकी कथा इस लेख में बताई गई है।
वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में से ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वोत्तम मानी गई है। इसका व्रत करने से सारी एकादशियों के व्रतों का फल मिल जाता है।
निर्जला व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करें, "हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, और कल भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा। आपकी कृपा से मेरे सभी पाप नष्ट हो जाएं।" इस दिन, जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है, वह विशेष पुण्य प्राप्त करता है।
यह व्रत नर और नारी दोनों को करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत रखते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिए।
एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का सेवन वर्जित है। आचमन में छह मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए, अन्यथा यह मद्यपान के समान हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाए तो व्रती को सभी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन करना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो महाबली भीम ने निवेदन किया, "पितामह! आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बिना नहीं रह सकता। मेरे पेट में 'वृक' नाम की अग्नि है, जिसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी इस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?"
वेदव्यास ने भीम की समस्या का समाधान करते हुए कहा, "नहीं, कुंतीनंदन। धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण करता है और सबके योग्य व्रत-नियमों की व्यवस्था भी प्रदान करता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करो, जिससे आपको वर्ष की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह, आप इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे।"
इतने आश्वासन पर भीमसेन इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए, वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।