पूर्णचंद्रमुखम नीलेन्दु रूपम - स्तोत्र

महत्वपूर्ण जानकारी

  • श्री कृष्णदास द्वारा रचित पूर्णब्रह्म स्तोत्र भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक हृदयस्पर्शी भजन है, जो सर्वोच्च निरपेक्ष (पूर्णब्रह्म) का अवतार है। यह स्तोत्र भगवान के दिव्य रूप, ब्रह्मांडीय भूमिकाओं और भक्तों के साथ उनके दयालु संबंध का गुणगान करता है। यह अर्धचंद्र से सुशोभित उनकी सुंदरता और नरसिंह और वामन जैसे दिव्य अवतारों के रूप में उनके प्रकटीकरण पर प्रकाश डालता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र का जाप करने से भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद मिलता है, शांति, भक्ति और मुक्ति मिलती है।

पूर्णचन्द्रमुखं निलेन्दु रूपम्
उद्भाषितं देवं दिव्यं स्वरूपम्
पूर्णं त्वं स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवम्
पिता माता बंधु त्वमेव सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥१॥

कुंचितकेशं च संचित्वेशम्
वर्तुलस्थूलनयनं ममेशम्
पीनकनीनिकानयनकोशम्
आकृष्ट ओष्ठं च उत्कृष्ट श्वासम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ २ ॥

नीलाचले चंचलया सहितम्
आदिदेव निश्चलानंदे स्थितम्
आनन्दकन्दं विश्वविन्दुचंद्रम्
नंदनन्दनं त्वं इन्द्रस्य॒ इन्द्रम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ३ ॥

सूष्टिस्थितिप्रलयसर्वमूलं
सूक्ष्मातिसुक्ष्मं त्वं स्थूलातिस्थूलम्
कांतिमयानन्तं अन्तिमप्रान्तं
प्रशांतकुन्तलं ते मूर्त्तिमंतम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ४ ।।

यज्ञतपवेदज्ञानात् अतीतं
भावप्रेमछंदे सदावशित्वम्
शुद्धात् शुद्धं त्वं च पूर्णात् पूर्णं
कृष्ण मेघतुल्यं अमूल्यवर्णं
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥५॥

विश्वप्रकाशम् सर्वक्लेशनाशम्
मन बुद्धि प्राण श्वासप्रश्वासम्
मत्स्य कूर्म नृसिंह वामनः त्वम्
वराह राम अनंतः अस्तित्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ६॥

ध्रुवस्य विष्णु त्वं भक्तस्य प्राणम्
राधापति देव हे आर्त्तत्राणम्
सर्व ज्ञान सारं लोक आधारम्
भावसंचारम् अभावसंहारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।।७।।

बलदेवसुभद्रापार्श्वे स्थितम्
सुदर्शनसँगे नित्य शोभितम्
नमामि नमामि सर्वांग देवम्
हे पूर्णब्रह्म हरि मम सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ८॥


कृष्णदासहृदि भाव संचारम्
सदा कुरु स्वामी तव किंकरम्
तब कृपा बिन्दु हि एक सारम्
अन्यथा हे नाथ सर्व असारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।।9।।

॥ इति श्री कृष्णदासः विरचितं पूर्णब्रह्म स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।



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