उत्तराखंड की देवभूमि में स्थित अल्मोड़ा अपनी प्राचीन विरासत, संस्कृति, और ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यह भूमि आदिम मानव बस्तियों और प्रारंभिक आर्य लोगों की गवाह रही है। पुराणों और महाभारत में भी अल्मोड़ा का उल्लेख मिलता है। यहाँ के मंदिर, विशेषकर चंद वंश के शासकों द्वारा निर्मित, प्राचीन काल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों का प्रतीक हैं। 1500 के दशक में चंद वंश के शासनकाल में अल्मोड़ा एक प्रमुख सत्ता केंद्र बन गया था।
अल्मोड़ा से कुछ ही दूरी पर स्थित कपिलेश्वर महादेव मंदिर का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है। यह मंदिर लगभग 1200 से 1300 साल पुराना माना जाता है और इसका निर्माण कत्यूर वंश के शासकों द्वारा किया गया था, जो शैव धर्म के अनुयायी थे। कत्यूरियों ने उत्तराखंड में कई शिवालयों का निर्माण करवाया था, जिनमें कपिलेश्वर महादेव मंदिर प्रमुख है।
कपिलेश्वर महादेव मंदिर शकुनि और फड़का नदियों के संगम पर स्थित है। शकुनि नदी का उद्गम अल्मोड़ा जिले के चायखान गाँव से होता है, जबकि फड़का नदी अल्मोड़ा के मोतियापाथर गाँव से निकलती है। यह मंदिर नैनीताल और अल्मोड़ा की सीमा पर स्थित है। मंदिर की विशेष शैली कत्यूरी राजवंश के निर्माण के तरीके को दर्शाती है, जिसमें स्थानीय हल्के भूरे रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
मंदिर के निर्माण और इसकी विशेषताओं से जुड़ी कई पौराणिक कहानियाँ हैं। एक प्रचलित कहानी के अनुसार, कपिलेश्वर और मौना नामक दो नागों के बीच एक प्रतिद्वंद्विता थी। दोनों नागों ने एक-दूसरे के मंदिरों को नष्ट करने का निर्णय लिया था। कपिलेश्वर का नाग मौना के मंदिर को नष्ट करने पहुँचा और मौना का नाग कपिलेश्वर के मंदिर की ओर गया। जब कपिलेश्वर का नाग अपने कार्य को पहले पूरा कर वापस लौटा, तो मौना का नाग अपनी हार मानकर लौट गया। इस घटना के बाद, माना जाता है कि कपिलेश्वर का मंदिर थोड़ा झुक गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, मंदिर के पास बहने वाली नदी के पत्थरों पर जो सफेद निशान दिखाई देते हैं, वे उन नागों की लड़ाई के चिन्ह हैं।
कपिलेश्वर महादेव मंदिर का गर्भगृह एक स्वयंभू शिवलिंग की उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है, जो धरती से स्वयं उत्पन्न हुआ माना जाता है। मंदिर के पुजारी गोस्वामी परिवार की कई पीढ़ियाँ यहाँ शिवलिंग की पूजा करती आ रही हैं। यहाँ भगवान शिव और देवी पार्वती के विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं जो कत्यूरियों की कला का प्रतीक हैं।
कपिलेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य भवन का झुका हुआ होना एक विशेषता है जो ध्यान आकर्षित करती है। कुछ लोग मानते हैं कि भू-धंसाव के कारण मंदिर झुका हुआ है, जबकि अन्य इसे नागों के बीच हुई पौराणिक लड़ाई से जोड़ते हैं। यह झुकाव मंदिर की पौराणिकता और रहस्यमयता को और अधिक गहराई देता है।
यह प्राचीन मंदिर मौना-ल्वेशाल से एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। मुक्तेश्वर धाम से कपिलेश्वर महादेव मंदिर तक पहुँचने के लिए एक आकर्षक ट्रेक का रास्ता है, जो लगभग 9 किमी की दूरी तय करता है और ओक, पाइन, और रोडोडेंड्रोन के घने जंगलों से होकर गुजरता है। मार्च और अप्रैल का समय यहाँ आने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, जब लाल रोडोडेंड्रोन खिलते हैं। अगर ट्रेकिंग करना संभव न हो, तो सड़क मार्ग से भी मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। मुक्तेश्वर से लगभग 45 मिनट की ड्राइव और फिर एक किलोमीटर की ढलान आपको कपिलेश्वर महादेव मंदिर तक ले जाती है।
कत्यूरी वंश के शासक शैव धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने उत्तराखंड में कई शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था। ऐसा माना जाता है कि वे एक रात में ही मंदिरों का निर्माण कर देते थे। अगर सुबह होने तक निर्माण पूरा नहीं हो पाता, तो उसे अधूरा छोड़ दिया जाता था। कपिलेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण से जुड़ी इस मान्यता के अनुसार, इसका पिछला हिस्सा अधूरा रह गया था, जिसे बाद में स्थानीय लोगों ने पूरा किया।
कपिलेश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति, कला, और इतिहास का प्रतीक है। यह स्थान न केवल भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र है बल्कि उन लोगों के लिए भी जो इतिहास और प्रकृति में रुचि रखते हैं। देवभूमि उत्तराखंड की इस धरोहर को देखना और इसकी पौराणिक कथाओं को सुनना एक अद्वितीय अनुभव है जो मन को शांति और संतोष से भर देता है।