रुद्रनाथ मंदिर

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Location: Rudranath, Chamoli, Uttarakhand 246472
  • Open and Close  Timings: : 06.00 am to 07:00 pm.
  • April - Opening of the temple on Akshaya Tritiya(April/May)
  • November - Temple closes for winter after Diwali
  • Aarti Timings: 06:00 am and 06:30 pm
  • Nearest Airport : Jolly Grant airport of Dehradun at a distance of nearly 225 kilometres from Rudranath.
  • Nearest Railway Station: Rishikesh railway station at a distance of nearly 212 kilometres from Rudranath.
  • Primary deity: Lord Shiva.
  • Did you know: The Rudranath Temple is one of the Panch Kedars and the Third number of Panch Kedars. The temple was built by the Pandavas.

रुद्रनाथ मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले, गढ़वाल हिमाहलय पर्वतो, उत्तराखण्ड, भारत में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। रुद्रप्रयाग मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इस तीसरा नम्बर है। जो समुद्र तल से 3,600 मीटर (11,800 फीट) की ऊँचाई पर बना हुआ है। यह एक प्राकृतिक पत्थरों से बना एक मंदिर है जो रोडोडेंडन बौनों और अल्पाइन चरागाह के एक घने जंगल के भीतर स्थित है या ऐसा कहा जा सकता है कि यह संपूर्ण प्रकृति और पहाड़ी वनस्पतियों से घिरा हुआ है। यह मंदिर गोपेश्वर से 23 किमी दूरी पर है तथा 5 किमी मोटर वाहन से और शेष 18 किलोमीटर का पैदल द्वारा जाया जाता है। यह यात्रा अनुसुया देवी मंदिर से होकर जाती है।

रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के चेहरे की पूजा की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर को ‘रुद्रमुख’ भी कहा जाता है। ‘मुख’ शब्द का अर्थ है मुख या चेहरा ‘रुद्र’ शब्द का भगवान शिव को संदर्भित करता है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के चेहरे को ‘नीलकंठ’ के रूप में पूजा की जाती है। शांतिपूर्ण माहौल और आदर्श स्वभाव से भक्तों के लिए यह जगह अधिक धार्मिक और पवित्र है। रुद्रनाथ मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था।

एक कथा के अनुसार इस मंदिर को पंचकेदार इसलिए माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो को सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करे। इसलिए पांडवो भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए क्योकि भगवान शंकर पांडवों से नाराज थे पांडवो अपने कुल का नाश किया था। जब पांडवो गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था। पांडवो ने भगवान शंकर को खोज कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में, भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन पांच स्थानों में श्री रुद्रनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।

रुद्रनाथ की पैदल यात्रा का मार्ग बहुत कठीन है तथा यह एक साहसिक और आनंद का विषय है। यह मार्ग बहुत आसान नहीं है इसलिए पर्यटकों को स्थानीय गाइड की मदद लेनी चाहिए, क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है। यात्रा मार्ग पर कई मंदिर रास्ते पर मिलते हैं। जो उत्तरांचल को ‘देवताओं का घर’ साबित करते हैं।











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