घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा और नैनीताल जिले में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर न्याय के देवता गोलू देवता को समर्पित है। भक्तों की मान्यता है कि यहां उनकी मुरादें पूरी होती हैं, इसलिए श्रद्धालु अपनी मन्नतें कागज पर लिखकर मंदिर में टांगते हैं। जब उनकी मुराद पूरी होती है, तो वे उपहार के रूप में मंदिर में घंटियाँ चढ़ाते हैं। मंदिर का यह अनूठा स्वरूप इसे श्रद्धालुओं के बीच और भी लोकप्रिय बनाता है।
घोड़ाखाल मंदिर में एक प्रचलित मान्यता है कि अगर कोई नवविवाहित जोड़ा यहाँ दर्शन करने आता है, तो उनका वैवाहिक जीवन सात जन्मों तक सफल रहता है। इसलिए, हर साल यहाँ अनेक नवविवाहित जोड़े अपनी शुभ शुरुआत के लिए आशीर्वाद लेने आते हैं।
मंदिर में भक्त अपनी मन्नतें कागज और पत्रों में लिखकर एक विशेष स्थान पर टांगते हैं। मान्यता है कि गोलू देवता इन पत्रों के माध्यम से ही अपने भक्तों की समस्याओं को सुनते हैं और उन्हें समाधान प्रदान करते हैं। श्रद्धालु यहाँ न्याय की उम्मीद लेकर आते हैं और उनकी समस्याएँ दूर होती हैं।
गोलू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है और उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में उन्हें राजवंशी देवता के रूप में जाना जाता है। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि गोलू देवता के दरबार से कभी भी कोई दुखियारा निराश होकर नहीं लौटता। उनकी कृपा से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।
गोलू देवता की कथा उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के चंपावत जिले से जुड़ी है। वहां के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियाँ थीं, लेकिन किसी से संतान नहीं थी। राजा को सपने में नीलकंठ पर्वत पर तपस्या करती कलिंका नाम की एक कन्या दिखी। राजा ने कलिंका से विवाह किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम गोलू रखा गया।
गोलू के जन्म से जलन के कारण अन्य रानियों ने नवजात शिशु की जगह खून से सना सिलबट्टा (पत्थर) रख दिया और उसे खतरनाक गायों के बीच छोड़ दिया। लेकिन गोलू गायों का दूध पीकर बढ़ता रहा। बाद में रानियों ने बच्चे को एक संदूक में बंद कर नदी में बहा दिया, लेकिन मछुआरे भाना ने उसे बचा लिया और पाला।
गोलू ने एक बार अपने लकड़ी के घोड़े के साथ रानियों के सामने न्याय की बात की कि यदि एक महिला सिलबट्टा (पत्थर) को जन्म दे सकती है, तो काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है। इस बात ने राजा का ध्यान आकर्षित किया और बाद में गोलू ने अपने माता-पिता की पहचान बताई। राजा ने उसे अपना पुत्र मान लिया और गोलू को न्याय का प्रतीक बना दिया। इसी वजह से गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और उनका वाहन घोड़ा है।
घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर की यात्रा करने के लिए आप दिल्ली से काठगोदाम तक ट्रेन द्वारा पहुँच सकते हैं, और पंतनगर के लिए फ्लाइट भी उपलब्ध है। काठगोदाम से घोड़ाखाल के लिए टैक्सी या स्थानीय परिवहन आसानी से मिल जाते हैं। मंदिर तक पहुंचने के बाद आपको गोलू देवता की एक विशाल मूर्ति के दर्शन होंगे, जिसमें वे सिर पर सफेद पगड़ी पहने और सफेद घोड़े पर सवार हैं।
घोड़ाखाल मंदिर में पूजा के लिए घी, दूध, दही, हलवा, पूरी और पकौड़ी का भोग लगाया जाता है। यहाँ भक्त अपने पत्रों के माध्यम से गोलू देवता से अपनी समस्याओं का समाधान मांगते हैं। मंदिर की दीवारों और परिसर में हज़ारों पत्र और घंटियाँ टंगी होती हैं, जो भक्तों की असीम आस्था और विश्वास को दर्शाती हैं।
घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और न्याय का प्रतीक है। इस मंदिर की विशिष्टता और गोलू देवता की न्यायप्रियता के कारण यह उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। यहाँ की परंपराएँ और मान्यताएँ हर साल हज़ारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। अगर आप भी न्याय के देवता के दरबार में अपनी मुरादें पूरी होते देखना चाहते हैं, तो घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर जरूर जाएँ।