कल्पेश्वर मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले, उर्मगम घाटी, उत्तराखण्ड, भारत में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इस पांचवा नम्बर है। जो समुद्र तल से 2,200 मीटर (7,217 फीट) की ऊँचाई पर बना हुआ है। कल्पेश्वर एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जो पूरे वर्ष में उपलब्ध हैं। यह एक छोटा सा मंदिर जो पत्थर की गुफा मंे बना हुआ है ऐसा माना जाता है भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है। इसलिए, भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है। जटा शब्द का अर्थ होता है ‘बाल’। कल्पेश्वर मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। कल्पेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली में है।
एक कथा के अनुसार इस मंदिर को पंचकेदार इसलिए माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो को सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करे। इसलिए पांडवो भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए क्योकि भगवान शंकर पांडवों से नाराज थे पांडवो अपने कुल का नाश किया था। जब पांडवो गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था। पांडवो ने भगवान शंकर को खोज कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में, भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन पांच स्थानों में श्री कल्पेश्वर को पंचकेदार कहा जाता है।
कल्पेश्वर मंदिर की यात्रा के लिए कार व बाइक द्वारा जाया जा सकता है। ऋषिकेश से लारी गांव तक सड़क बहुत अच्छी है लेकिन कुछ स्थान पर सड़क कच्चा बनी हुई जो मानसून के दौरान क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस सड़क में छोटी कारों को जाने की सलाह नहीं दी जाती है। लारी गांव से कल्पेश्वर मंदिर तक पैदल द्वारा जाया जाता है जो लगभग 2 किलोमीटर दूर है।