सोमनाथ मंदिर हिन्दूओं के प्रमुख तीर्थ स्थल में एक है। यह मंदिर भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है। यह मंदिर गुजरात का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान और पर्यटन स्थल है। सोमनाथ मंदिर में स्थित ज्योति लिंग भगवान शिव के 12 ज्योति लिंग में से है तथा 12 ज्योति लिंगों में से सोमनाथ को सबसे पहला ज्योति लिंग माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। सोमनाथ का अर्थ “सोम के भगवान” से है अर्थात् ‘चंद्र व चंद्रमा देवता की रक्षा’। इसलिए भगवान शिव को सोमेश्वर भी कहा जाता है अर्थात् ‘चंद्रमा का स्वामी’।
सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया था। वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत के लौहपुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था जो कि सन् 1951 के पुरा हुआ था। पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सोम अर्थात् चंद्र ने, दक्षप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन चंद्र देवता का सबसे प्रिय उनकी पहली पत्नी रोहिण से अधिक प्यार व सम्मान दिया करते थे। दक्षप्रजापति को यह देखकर अधिक क्रोधित हो गये और उन्होंने चंद्र देवता का शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज क्षीण होता रहेगा। शाप से विचलित और दुःखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अंततः शिव प्रसन्न हुए और सोम-चंद्र के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने के बाद भगवान शिव ने यहां ज्योति लिंग के रूप मे स्थापित हुये और उनका नामकरण ‘सोमनाथ’ हुआ।
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही एक शिकारी उनके पैर के नीचे अर्थात् तलहुये में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख समझकर तीर मारा था तब भगवान श्रीकृष्ण ने देह त्याग कर यहीं से वैकुं़ठ को प्रस्थान किया था। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
सोमनाथ मंदिर को कई बार तोडा व बनाया गया था। सोमनाथ मंदिर को कई राजाओं द्वारा तोड़ा गया था, आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने तोड़ा तथा प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। 815 ई में महमूद गज़नबी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा व पूरी तरह से लूट था तथा गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। पांचवी बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया तथा इस समय जो वर्तमान मंदिर है उसे भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया था।
इस दौरान मंदिर में स्थापित ज्योति लिंग को कई बार खंडित व नष्ट किया गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया।