महान महाकाव्य महाभारत में, धर्मराज के पुत्र महाराजा युधिष्ठिर सभी अच्छे गुणों के अवतार थे। युधिष्ठिर, वैदिक ग्रंथों और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोगों के बारे में अपनी गहरी समझ रखते थे। जंगल में निर्वासन में रहते हुए एक दिन, युधिष्ठिर को पता चला कि एक झील से पानी पीने का प्रयास करते समय, उनके सभी भाइयों को यक्ष राज ने मार डाला था। जब युधिष्ठिर पहुंचे, तो यक्ष ने युधिष्ठिर से कहा कि वे उनके सभी प्रश्नों का उत्तर दें अन्यथा उन्हें अपने भाइयों के समान परिणाम भुगतने होंगे। ये प्रश्न-उत्तर वैदिक सूत्रों की तरह संक्षिप्त, सारगर्भित एवं व्यावहारिक हैं तथा धर्मपरायणता एवं धार्मिकता से संबंधित हैं।
प्रश्न और उत्तर
- यक्ष: पृथ्वी से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊंचा क्या है?
युधिष्ठिर: माता पृथ्वी से भी भारी है. पिता आकाश से भी ऊंचा है. - यक्ष: हवा से भी तेज चलने वाला क्या है? तिनकों से भी ज्यादा असंख्य क्या है?
युधिष्ठिर: मन हवा से भी तेज चलने वाला है. चिंता तिनकों से भी ज्यादा असंख्य होती है. - यक्ष: रोगी का मित्र कौन है? मृत्यु के समीप व्यक्ति का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर: वैद्य रोगी का मित्र है. मृत्यु के समीप व्यक्ति का मित्र है दान. - यक्ष: यश का मुख्य स्थान क्या है? सुख का मुख्य स्थान क्या है?
युधिष्ठिर: यश का मुख्य स्थान दान है. सुख का मुख्य स्थान शील है. - यक्ष: धन्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है? मनुष्य का परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिर: धन्य पुरुषों में उत्तम गुण है कार्य-कुशलता. दान मनुष्य का परम आश्रय है. - यक्ष: लाभों में प्रधान लाभ क्या है? सुखों में उत्तम सुख क्या है?
युधिष्ठिर: निरोगी काया सबसे प्रधान लाभ है. सबसे उत्तम सुख है संतोष. - यक्ष: दुनिया में श्रेष्ठ धर्म क्या है? किसको वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते?
युधिष्ठिर: दया दुनिया में श्रेष्ठ धर्म है. मन को वश में रखने से मनुष्य शोक नहीं करते. - यक्ष: किस वस्तु को त्यागकर मनुष्य दूसरों को प्रिय होता है? किसको त्यागकर शोक नहीं होता?
युधिष्ठिर: अहंकार को त्यागकर मनुष्य सभी को प्रिय होता है. क्रोध को त्यागकर शोक नहीं करता. - यक्ष: किस वस्तु को त्यागकर मनुष्य धनी होता है? किसको त्यागकर सुखी होता है?
युधिष्ठिर: काम-वासना को त्यागकर मनुष्य धनी होता है. लालच को त्यागकर वह सुखी होता है. - यक्ष: मनुष्य मित्रों को किसलिए त्याग देता है? किनके साथ की हुई मित्रता नष्ट नहीं होती?
युधिष्ठिर: लालच के कारण मनुष्य मित्रों को त्याग देता है. सच्चे लोगों से की हुई मित्रता कभी नष्ट नहीं होती. - यक्ष: दिशा क्या है? जो बहुत से मित्र बना लेता है, उसे क्या लाभ होता है?
युधिष्ठिर: सत्पुरुष दिशाएं हैं. जो बहुत से मित्र बना लेता है, वह सुख से रहता है. - यक्ष: उत्तम दया किसका नाम है? सरलता क्या है?
युधिष्ठिर: सबके सुख की इच्छा रखना ही उत्तम दया है. सुख-दुःख में मन का एक जैसा रहना ही सरलता है. - यक्ष: मनुष्यों का दुर्जय शत्रु कौन है? सबसे बड़ी बीमारी क्या है?
युधिष्ठिर: क्रोध ऐसा शत्रु है, जिस पर विजय पाना मुश्किल होता है. लालच सबसे बड़ी बीमारी है. - यक्ष: साधु कौन माना जाता है? असाधु किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर: जो समस्त प्राणियों का हित करने वाला हो, वही साधु है. निर्दयी पुरुष को ही असाधु माना गया है. - यक्ष: धैर्य क्या कहलाता है? परम स्नान किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर: इंद्रियों को वश में रखना धैर्य है. मन के मैल को साफ करना परम स्नान है. - यक्ष: अभिमान किसे कहते हैं? कौन-सी चीज परम दैवीय है?
युधिष्ठिर: धर्म का ध्वज उठाने वाले को अभिमानी कहते हैं. दान का फल परम दैवीय है. - यक्ष: मधुर वचन बोलने वाले को क्या मिलता है? सोच-विचारकर काम करने वाला क्या पाता है?
युधिष्ठिर: मधुर वचन बोलने वाला सबको प्रिय होता है? सोच-विचारकर काम करने से काम में जीत हासिल होती है. - यक्ष: सुखी कौन है?
युधिष्ठिर: जिस व्यक्ति पर कोई कर्ज नहीं है, जो दूसरे प्रदेश में नहीं है, जो व्यक्ति पांचवें-छठे दिन भी घर में रहकर साग-सब्जी खा लेता है, वही सुखी है. - यक्ष: आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर: हर रोज संसार से प्राणी यमलोक जाते हैं. लेकिन जो बचे हुए हैं, वे सर्वदा जीने की इच्छा करते रहते हैं. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा? - यक्ष: सबसे बड़ा धनी कौन है?
युधिष्ठिर: जो मनुष्य प्रिय-अप्रिय, सुख-दुःख, अतीत-भविष्य में एकसमान रहता है, वही सबसे बड़ा धनी है.
यक्ष का अन्तिम प्रश्नों में से एक था:
दिने दिने हि भूतानि प्रविशन्ति यमालयम्।
शेषास्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्॥
(अर्थ : प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। क्या इससे बड़ा कोई आश्चर्य है?)
जिनमें से एक (किमाश्चर्यम्) के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा :
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥
(अर्थ : प्रतिदिन ही प्राणी यम के घर में प्रवेश करते हैं, शेष प्राणी अनन्त काल तक यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। इससे बड़ा और क्या आश्चर्य हो सकता है !)