ॐ हिंदू धर्म में एक पवित्र ध्वनि और आध्यात्मिक का प्रतीक है। ॐ हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में प्राचीन और मध्ययुगीन युग पांडुलिपियों, मंदिरों, मठों और आध्यात्मिक ग्रंथों में प्रतिमा का हिस्सा है। सभी भारतीय धर्मों में एक आध्यात्मिक अर्थ है, लेकिन ॐ का अर्थ विभिन्न परंपराओं के बीच अलग-अलग हैं।
हिंदू धर्म में, ॐ सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रतीकों (प्रतित्मा) में से एक है। यह आत्मा (आत्मा, स्वयं के भीतर) और ब्रह्म (परम वास्तविकता, ब्रह्मांड, सच्चाई, दिव्य, सर्वोच्च आत्मा, ब्रह्मांडीय सिद्धांतों, ज्ञान) का संदर्भ देता है। वेदों, उपनिषदों और अन्य हिंदू ग्रंथों के अध्यायों के प्रारंभ में ॐ का उचारण किया जाता है। पूजा के दौरान, विवाह समरोह, संस्कारिक समारोह, ध्यान और योगात्मक गतिविधियों जैसे योगों के दौरान, ॐ का उचारण पहले, बीच में और अन्त में किया जाता है ॐ एक पवित्र आध्यात्मिक मंत्र है।
ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्माण में ॐ ध्वनि का उचारण होता रहता है। सूर्य के अन्दर से भी ॐ की ध्वनि का अनुभव होता है। ॐ वह अमृत है जिसको सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
ॐ का अर्थ
ॐ का वास्तविक रूप से कोई अर्थ ही नहीं है वस्तुतः ॐ शब्द ही नहीं है। शब्द सृष्टि में और सृष्टि से सब बने है, क्योंकि समस्त सृष्टि ॐ में है, इसलिए ॐ का अर्थ जाना नही जा सकता है। केवल अनुभव किया जा सकता है और ॐ का अनुभव तभी होगा जब व्यक्ति के मन में कोई विचार, कोई इच्छा, कोई स्वप्न हो, कोई अपेक्षा ना हो और मन पूर्णतः शान्त हो। ॐ का निर्माण नहीं किया जा सकता, ना ही किया गया है, क्योंकि सृष्टि का निर्माण ॐ से ही हुई है।
वास्तव में त्रिदेव और ॐ अलग-अलग नहीं है। अपितु ॐ का उचारण मतलब तीनों देव का उचारण है। ॐ के उचारण से सभी त्रुटियाँ, मानसिक विकृतियां को ठीक किया जा सकता हैं, और ॐ के द्वारा वंदना गान भी हो सकता है। इसलिए तीनों देव से पूर्व ॐ का उचारण किया जाता है। सच्चे मन और एकाग्रता से ॐ का उचारण किया जाये तो तीनों देवों का अनुभूति एक साथ व एक स्थान पर हो सकती है।