मूर्ति पूजन क्यों करते है और मूर्ति पूजन करने से क्या लाभ होता है? यह प्रश्न हर किसे के मन में होता है। हिन्दूं धर्म में मूर्ति पूजन को महत्वपूर्ण और आस्था का प्रतीक माना जाता है। हिन्दूं धर्म में यह माना जाता है कि ईश्वर सब जगह विधमान है अर्थात् ईश्वर सृष्टि के कण-कण में है। सबसे पहले हमें ये जानना जरूरी है कि मूर्ति क्या है? मूर्ति वह जिसमें हम किसी भी देवता की छवि, रूप या आकार है, जिसकी हम पूजा करते है। मूर्तियों की स्थापना हम मंदिर और अपने घर के पवित्र स्थान पर करते है। मंदिर एक वह स्थान है जहां पर सभी वर्गो के लोग अपने ईश्वर की आराधना व ध्यान करने के लिए आते है।
आज के दौर में ईश्वर के प्रति ध्यान लगना बहुत कठिन है क्योंकि हमारे दिमाग में कई तरह की उथल पुथल होती रहती है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने इसका एक सरल माध्यम बनाया था, वह मूर्ति की पूजा करना। जिस स्थान पर मूर्ति की स्थापना होती है उसके आस पास का वातावरण शुद्ध व पवित्र होता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति मूर्ति के समाने आने पर अपने मन को शुद्ध व पवित्र करता है, और जिस व्यक्ति का मन शुद्ध व पवित्र होगा ईश्वर उसने मन में वास करते है।
हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा, लोगों में आस्था और भक्ति निर्माण करने का सरल मार्ग है, अर्थात् ईश्वर से जूड़ने का सरल माध्यम है। मूर्तियाँ भक्तो को भगवान के आध्यात्मिक रूप से परिचित कराती है। भगवान की पूजा करते समय मूर्तियाँ एकाग्रता और ध्यान केंद्रित रखने में हमें सहयोग करती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति हमारे शरीर में उत्पन्न होती है और हमें मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद मिलती है। मूर्तियाँ हमें समुदाय में समानता और समानभाव विकसित करने में मदद करती है। पवित्रता को विकसित करने एवं देवताओ से जुड़े रहने का यह एक सरल एवं शक्तिशाली माध्यम है। यह भगवान की सार्वभौमिक उपस्थिति में सरल विश्वास का संबोधन है।