चामुंडा देवी जी का मंदिर भारत का प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो कि पश्चिम पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर, कांगडा से 24 किलोमीटर व धर्मशाला से 15 किलोमीटर की दूरी पर, कांगडा जिले, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर माँ चामुंडा देवी का समर्पित है जोकि भगवती काली का ही एक रूप है। चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नन्दिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चामुंडा देवी मंदिर में ‘शिव और शक्ति’ का वास है। चामुंडा देवी के मंदिर के पास भगवान शिव विराजमान है जो कि नन्दिकेश्वर के नाम से जाने जाते है। चामुंडा देवी जी का मंदिर बाणगंगा (बानेर) नदी के किनारे पर स्थित है। चामंुडा देवी का मंदिर बहुत ही अपनी एक धार्मिक महत्वता है तथा यह मंदिर लगभग 16वीं सदी का है। नव राात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।
ऐसा माना जाता है कि लगभग 400 सालों पहले राजा और ब्राह्मण पुजारी ने मंदिर को एक उचति स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए देवी माँ से अनुमति मांगी। देवी माँ ने इसकी सहमति देने के लिए पुजारी को सपनें में दर्शन दिऐ औरएक निश्चित स्थान पर खुदाई करने निर्देश दिया था। खुदाई के स्थान पर एक प्राचीन चामुंडा देवी मूर्ति पाई गई थी, चामुंडा देवी मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित किया गया और उसकी रूप में उसकी पूजा की जाने लगी।
राजा ने मूर्ति को बाहर लाने के लिए पुरुषों को कहा, परन्तु सभी पुरुष उसी मूर्ति हिलाने व बाहर लाने सक्षम नहीं थे। फिर देवी माँ ने पुजारी को सपनें में दर्शन दिये और देवी माँ ने कहाँ कि सभी पुरुष मूर्ति का साधारण पत्थर समझ कर उठाने की कोशिश कर रहे है। देवी माँ ने पुजारी से कहां कि वह सबुह जल्दी उठें व स्नान करें तथा पवित्र कपडे पहनें और एक सम्मानजनक तरीके से बाहर लाने के निर्देश दिए, और कहाँ कि वह सभी पुरुष मिल कर जो नहीं कर सकें वह अकेला आसानी से तभी कर पायेगा। पुजारी ने सभी लोगों का बताया कि यह सब देवी माँ की शक्ति थी। मंदिर में अब महात्म्य, रामायण और महाभारत के दृश्य को दर्शाया गया है। माँ चामुंडा देवी में मूर्ति में भगवान हनुमान और भैरों दोनों की छवि नजर आती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार चामुंडा देवी को देवी प्रमुख के रुप में व रुद्र के नाम से प्रतिस्थापित किया गया था जब भगवान शिव और जालंधर राक्षस के बीच युद्ध हो रहा था, इसी स्थान को ‘रुद्र चामुंडा’ कहा जाता है तथा इस मंदिर ‘रुद्र चामुंडा’ के नाम से भी जाना जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार ‘सावर्णि मन्वन्तर’ में देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हो रहा था। भगवती ‘कौशिकी’ ने अपनी एक भौं से देवी चंडिका को उत्पन्न किया। देवी कौशिकी ने चंडिका को चंद और मुंड दो राक्षसों को मारने के कार्य सौपा। देवी चंडिका ने दोनों राक्षसों से भीषण लड़ाई लड़ी और अन्त में दोनों राक्षसों को मार डाला और देवी चंडिका ने दोनों राक्षसों के सर काट कर ‘कोशिकी देवी’ के पास ले आई। देवी कोशिकी ने खुश होकर चंडिका देवी को आर्शीवाद और कहा कि तुमने चंद और मुंड दो राक्षसों को मारा अतः तुम्हारी संसार में चांमुडा नाम से प्रसिद्धि होगी।