बिजली महादेव एक हिन्दू मंदिर है जो कि भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश में कुल्लू घाटी के कशावरी गांव में स्थित है। बिजली महादेव मंदिर पूर्णतयः भगवान शिव को समर्पित है। बिजली महादेव मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। जिसकी ऊँचाई लगभग 2460 मीटर है।
बिजली महादेव मंदिर का नाम भारत के प्राचीन मंदिरों में आता है। यह भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बिजली महादेव मंदिर कुल्लू से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुख्य सड़क से मंदिर तक पैदल द्वारा जाया जाता है। पदैल मार्ग लगभग 3 किलोमीटर है। मंदिर से कुल्लू और पार्वती घाटियों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
बिजली महादेव मंदिर अपनी चमत्कारी शक्ति के कारण प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाये कि महादेव महिमा है। यह मंदिर भगवान शिव का बहुत ही अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर में शिवलिंग पर हर 12 साल के बाद आसमानी बिजली गिरती है।
जिसकी वजह से शिव लिंगम के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। इसके बाद पुजारी हर टुकड़ों को इकट्ठा करके उन्हें नाज, दाल के आटे और कुछ अनसाल्टेड मक्खन से बने पेस्ट से जोड़ देते हैं और कुछ दिनों के बाद लिंगम जैसा था वैसा ही हो जाता है।
बिजली के इस मंदिर में कहा जाता है कि लंबा डंडा बिजली के रूप में दिव्य आशीर्वाद को आकर्षित करता है। जिसकी ऊँचाई लगभग 60 फीट है। यह डंडा सिर्दी के मौसम में जब चारों तरफ बर्फ होती है तब यह डंडा धूप में चांदी की सुई की तरह चमकता है।
मंदिर का निर्माण राजा जगत सिंह ने 1652 में करवाया था और माना जाता है कि यह एक हजार साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर मूल रूप से हिमालय में अपने निर्वासन के दौरान पांडवों द्वारा एक छोटे मंदिर के रूप में बनाया गया था।
हर साल हजारों तीर्थयात्री भगवान शिव से आशीर्वाद लेने मंदिर आते हैं। मंदिर से जुड़ा एक मेला भी है, जो अगस्त के महीने में लगता है। यह मेला इस क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसे बड़े उत्साह और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता हैं कि प्राचीन समय में एक कुलांत नामक दैत्य ने इस जगह का अपना निवास बना लिया था, वह एक विशाल अजगर का रूप लेकर मंदी घोग्घरधार से होकर लाहौर स्पीती से मथाण गाँव तक आ गया था। अजगर रुपी दैत्य, इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। जिस कारण से उसने व्यास नदी के प्रवाह को रोक दिया। जिससे वहां निवास करने वाले सभी जीव पानी में डूबकर मर जाएँ। दैत्य कुलंत की इस मंशा को जानकर भगवानशिव ने अपने त्रिशूल से उसका अजगर रुपी दैत्य कुलांत का वध कर दिया। कुलांत की मृत्यु के तुरंत बाद उसका विशाल बॉडी एक विशाल पर्वत में परिवर्तित हो गया। ऐसा माना जाता है की कुलांत के नाम से ही इस शहर का नाम कुल्लू पड़ा।