आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी इन्दिरा एकादशी कहलाती है। भटकते हुए पितरों की गति सुधारने वाली एकादशी को इन्दिरा एकादशी कहते हैं।
इस दिन शालीग्राम की पूजा की जाती है। इस दिन शालीग्राम जी पर तुलसी दल अवश्य चढ़ाना चाहिए।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है और ऐसा करना पाप के समान होता है।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
पुराणों में कहा गया है कि सतयुग में इन्द्रसेन नामक एक राजा था। एक दिन नारदजी उसके यहाँ पधारे और कहने लगे - हे राजन! मैं यमलोक से आ रहा हूँ। वहाँ पर तुम्हारे पिता बड़े दुःखी हैं। तुम उनकी सद्गति के लिए आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पिताजी को सद्गति प्राप्त होगी।
इन्द्रसेन ने नारदरजी के कहने पर आश्विन कृष्ण एकादशी को व्रत किया। इससे उसके पिता यमलोक की यंत्रणा से मुक्त होकर स्वर्गलोक को चले गये। राजा की देखा देखी अनेक प्रजाजन भी यह व्रत रखने लगे।