सप्तशृंगी मंदिर एक हिन्दूओं को प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। यह धार्मिक स्थल नासिक के पास एक छोटे से गांव, कलवान तालुका नंदुरी में स्थित है। यह गांव भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। सप्तशृंगी मंदिर नासिक से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर महाराष्ट्र में ‘तीन व अर्ध शक्ति पीठ’ के नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू परंपराओं के अनुसार, देवी सप्तशृंगी निवासिन सात पर्वत चोटियों के भीतर स्थित है। सप्त का अर्थ है सात और श्रृंग का अर्थ चोटी। मंदिर में जाने के लिए पैदल द्वारा जाया जाता है। मंदिर तक 510 कदम सीढ़ियों के है। मंदिर के देख रेख का कार्य श्री सप्तशृंग निवासिनी देवी ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
सप्तशृंगी एक पर्वत है जिसमें सात पहाड़िया है तथा देवी का यह स्थान इन पहाड़ियों से घिरा हुआ है। जिसे स्थानीय रूप से घाड कहा जाता है। चोटियों की औसत ऊंचाई लगभग 4500 फीट है।
माँ सप्तशृंगी मंदिर जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है। इस मंदिर की देवी को सात पहाडों के देवी भी कहा जाता है। प्रत्येक दिन माँ सप्तशृंगी देवी के दर्शनों के लिए भक्त पूरे भारत से आते है। नव राात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती का दाहिना हाथ इस स्थान पर गिरा था।
ऐसी दंतकथा है कि किसी भक्त द्वारा मधुमक्खी का छत्ता तोड़ते समय उसे यह देवी की मूर्ति दिखाई दी थी। पर्वत में बसी इस देवी की मूर्ति आठ फुट ऊँची है। इसकी अठारह भुजाएँ हैं। देवी सभी हाथों में शस्त्र लिए हुए हैं जो कि देवताओं ने महिषासुर राक्षस से लड़ने के लिए उन्हें प्रदान किए थे।
इनमें शंकरजी का त्रिशूल, विष्णु का चक्र, वरुण का शंख, अग्नि का दाहकत्व, वायु का धनुष-बाण, इंद्र का वज्र व घंटा, यम का दंड, दक्ष प्रजापति की स्फटिकमाला, ब्रह्मदेव का कमंडल, सूर्य की किरणें, कालस्वरूपी देवी की तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल व कड़ा, विश्वकर्मा का तीक्ष्ण परशु व कवच, समुद्र का कमलाहार, हिमालय का सिंहवाहन व रत्न शामिल हैं।