अंजलिकास्त्र, देवराज इन्द्र का दिव्य अस्त्र, जिसे शक्ति और विनाश का प्रतीक माना जाता है। यह अस्त्र शत्रु के माथे को उसके शरीर से अलग कर देता है। आइए जानते हैं, रामायण और महाभारत के युगों में इस महाशक्तिशाली अस्त्र के प्रयोग की अद्भुत कहानियां।
परमपिता ब्राम्हा ने मेघनाद को आशीर्वाद दिया था कि देवी प्रत्यङ्गिरा के लिए यज्ञ की समाप्ती के पश्चात उसे एक दिव्य रथ प्राप्त होगा। इस रथ के रहने से कोई भी प्राणी उसे पराजित नहीं कर सकता। परंतु इस आशीर्वाद को पूर्ण करने के लिए यज्ञ में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए था।
मेघनाद ने परमपिता से एक दूसरा वरदान मांगा - उसका वध केवल वही कर सकता है जिसे बारह वर्ष से लगातार नींद नहीं आई हो।
इस रीति से लक्ष्मण ही ऐसा मनुष्य था जो मेघनाद का वध कर सकता था। विभीषण के र्निर्देशानुसार लक्ष्मण ने मेघनाद के यज्ञ को रोका एवं अंजलिकास्त्र से मेघनाद का वध किया।
कुरुक्षेत्र युद्ध के सत्रहवे दिन को इन्द्रपुत्र अर्जुन एवं सूर्यपुत्र कर्ण का युद्ध हुआ। अर्जुन के सारथि श्रीकृष्ण थें एवं कर्ण के सारथि मद्रनरेश शल्य थें।
जब कर्ण ने आगे बढ़ने का प्रयत्न किया, भूदेवी के दिए गए शाप से उसके रथ का पहिया कीचड़ में अटक गया। उसने ब्रह्मास्त्र प्रयोग में लाना चाहा परंतु परशुराम के दिए गए शाप के कारण यह भी संभव नहीं हो पाया। अंत में विवश होकर उसने पहिए को कीचड़ से निकालने का प्रयत्न किया।
कर्ण के हाथों में न अस्त्र थे, न शस्त्र। श्रीकृष्ण के र्निर्देशानुसार ठीक इसी समय अर्जुन ने अंजलिकास्त्र का प्रयोग करके कर्ण का वध किया।