वृद्ध जागेश्वर धाम - उत्तराखंड

महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्थान: मंटोला गुंठ, जागेश्वर रेंज, उत्तराखंड 263623.
  • खुलने और बंद होने का समय: सुबह 06:00 बजे से शाम 07:00 बजे तक.
  • यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय: अप्रैल से जून और सितंबर से अक्टूबर
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: वृद्ध जागेश्वर धाम से लगभग 119 किलोमीटर की दूरी पर काठगोदाम स्टेशन.
  • निकटतम हवाई अड्डा: वृद्ध जागेश्वर धाम से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर पंत नगर हवाई अड्डा.
  • दूरियाँ: दिल्ली से वृद्ध जागेश्वर 425 किलोमीटर, अल्मोड़ा 37.9 किलोमीटर, हल्द्वानी 131 किलोमीटर और पिथौरागढ़ 93.1 किलोमीटर. इन स्थानों से वृद्ध जागेश्वर के लिए राज्य परिवहन, और निजी जीप और टैक्सियाँ नियमित रूप से चलती हैं.
  • मुख्य त्यौहार: जागेश्वर मानसून महोत्सव और महा शिवरात्रि मेला.
  • क्या आप जानते हैं: ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहाँ भगवान विष्णु की तपस्या की थी और उनके दर्शन प्राप्त किए थे. इस कारण से, यहाँ भगवान विष्णु की शालिग्राम के रूप में पूजा की जाती है.

वृद्ध जागेश्वर मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। वृद्ध जागेश्वर हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। वृद्ध जागेश्वर मंदिर, जागेश्वर धाम से कुछ ऊपर की ओर स्थित है और इसे पुराना शिव मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर जागेश्वर से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर और अल्मोड़ा से लगभग 37.9 किलोमीटर दूर है। ऐसा कहा जाता है कि यह स्थान भगवान शिव का निवास स्थान था, जब वे जागेश्वर में स्थापित होने से पहले यहां निवास करते थे। इस मंदिर की शांति और दिव्यता श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है, और यह जागेश्वर और वृद्ध जागेश्वर के बारे में सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक है।

वृद्ध जागेश्वर मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। यहां आने वाले श्रद्धालु विभिन्न प्रकार की पूजा-अर्चना करते हैं और यह माना जाता है कि इस मंदिर में की गई दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। खासकर, ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। यहां से हिमालय पर्वत की कई प्रसिद्ध चोटियां जैसे छोटा कैलाश और ओम पर्वत भी दिखाई देती हैं, जो इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता में और भी इजाफा करती हैं।

मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में उदय चंद राजा के शासनकाल में हुआ था। कहा जाता है कि भगवान शिव ने वृद्धावस्था में राजा उदय चंद को दर्शन दिए थे, जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर में उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि विभिन्न राज्यों से भी श्रद्धालु आकर भगवान शिव की पूजा करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होने की गहरी आस्था है, खासकर उन लोगों की, जिनकी संतान नहीं हो पाती।

वृद्ध जागेश्वर मंदिर का एक अन्य धार्मिक पहलू यह है कि भगवान शिव ने यहां भगवान विष्णु की तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए। यहां शालिग्राम रूपी विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त मालपुए का भोग लगाते हैं। इसके अलावा, मंदिर परिसर में भगवान कुबेर, कालिका मंदिर और बटुक भैरव का मंदिर भी स्थित है।

महाशिवरात्रि का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु और पर्यटक विशेष पूजा और अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए मंदिर परिसर में आते हैं। इस दौरान भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद लेने और महाशिवरात्रि के धार्मिक उत्सवों का हिस्सा बनने के लिए यहां इकट्ठा होते हैं।

वृद्ध जागेश्वर मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के साथ-साथ इसकी प्राकृतिक सुंदरता और शांति इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाती है, जो हर श्रद्धालु के दिल में गहरी आस्था और श्रद्धा का भाव पैदा करती है।

वृद्ध जागेश्वर मंदिर के बारे में कई रोचक तथ्य हैं, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाते हैं:

  • भगवान शिव का प्राचीन निवास: ऐसा माना जाता है कि वृद्ध जागेश्वर मंदिर भगवान शिव का प्राचीन निवास था, जहां वे जागेश्वर मंदिर में स्थापित होने से पहले निवास करते थे। इसलिए इसे "वृद्ध शिव" भी कहा जाता है।
  • उदय चंद राजा का दर्शन: 7वीं शताब्दी के उदय चंद राजा को भगवान शिव ने वृद्धावस्था में दर्शन दिए थे, जिसके बाद राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया। यह मान्यता मंदिर को और भी पवित्र और ऐतिहासिक बनाती है।
  • संतान प्राप्ति की मान्यता: यह मंदिर विशेष रूप से उन श्रद्धालुओं के लिए प्रसिद्ध है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। यहां पूजा-अर्चना करने से उनकी यह मनोकामना पूरी होती है, ऐसा मानना है।
  • विशाल प्राकृतिक दृश्य: मंदिर से हिमालय की कई प्रसिद्ध चोटियां जैसे छोटा कैलाश और ओम पर्वत दिखाई देते हैं। इससे न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक दृष्टि से भी यह मंदिर बहुत खास है।
  • शिव-विष्णु तपस्या का स्थल: कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां भगवान विष्णु की तपस्या की थी और उनके दर्शन प्राप्त किए थे। इस कारण यहां भगवान विष्णु की शालिग्राम रूपी पूजा की जाती है।
  • मालपुए का भोग: इस मंदिर में विशेष रूप से मालपुए का भोग लगाया जाता है, जो अन्य शिव मंदिरों से अलग इसे एक खास परंपरा बनाता है।
  • गोरखा शासनकाल का पुनर्निर्माण: इस मंदिर का पुनर्निर्माण गोरखा शासन (1790-1815) के दौरान किया गया था। यह मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता को और भी बढ़ाता है।
  • महाशिवरात्रि उत्सव: महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक मंदिर में भगवान शिव का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।
  • प्राकृतिक जल स्रोत: मंदिर चार प्राकृतिक जल स्रोतों से घिरा हुआ था। इनमें से एक जल स्रोत को "गौरी कुंड" कहा जाता है, जिसे पवित्र माना जाता था, हालांकि अब यह सूख चुका है।
  • भगवान कुबेर और बटुक भैरव के मंदिर: मुख्य मंदिर के अलावा यहां भगवान कुबेर और बटुक भैरव के मंदिर भी स्थित हैं, जो इसे और भी खास बनाते हैं।



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