कुंभ मेला 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्थान: हरिद्वार, प्रयाग (इलाहाबाद), नासिक-त्र्यंबक, और उज्जैन।
  • 2025 में प्रयागराज में कुंभ मेला मेला 13 जनवरी से शुरू होगा।

कुंभ मेला भारत में धार्मिक तीर्थयात्रियों की दुनिया की सबसे बड़ी मण्डली के रूप में माना जाता है जहां सभी तीर्थयात्री एकत्रित होकर पवित्र नदी में स्नान करते है। कुंभ मेला का अर्थ, कुंभ का अर्थ ‘घड़ा’ और मेला का अर्थ संस्कृत में निष्पक्ष है। कुंभ मेले में भाग लेने व स्नान करने के लिए देश विदेश के कोने कोने से श्रदालु आते है। कुंभ मेले में लगभग 100 करोड़ लोग एकत्रित होकर पवित्र नदी में स्नान करते है।

यह मेला भारत में चार स्थानों पर हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और इलाहबाद में डेढ़ महीने के लिए बारी-बारी से हर 3 साल में और प्रत्येक के लिए हर 12 साल में आयोजित किया जाता है। ये मेला हरिद्वार में पवित्र गंगा, नासिक में पवित्र गोदावरी, उज्जैन में पवित्र शिप्रा तथा इलाहबाद में पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम के स्थान पर आयोजित किया जाता है। अर्द्ध (आधा) कुंभा मेला का आयोजन भी किया जाता है जोकि सिर्फ दो स्थानोें हर 6-6 सालों के अन्तराल में हरिद्वार और इलाहबाद में आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले की त्यारी 6 महीने पहले से कि जाती है ताकि मेले में आये सभी तीर्थयात्रियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

ऐसा माना जाता है कि जब देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था और समुद्र मंथन से अमृत निकला था जिसे पाने के लिए दोनों पक्षों के बीच युद्व हुआ और उस दौरान उसकी चार बुँन्दे इन चार स्थानों में गिर थी, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए इस कुंभ में स्नान करता है ऐसा हिन्दुं धर्म में माना जाता है।

मध्यकालीन हिन्दु धर्मशास्त्र के अनुसार इस तीर्थ मेले की उत्पत्ति के अवलोकन सबसे लोकप्रिय मध्ययुगीन पुराणों में से एक भगवत पुराण में पाया जाता है और समुद्र मंथन का भगवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में उल्लेख किया गया है। कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है, लेकिन मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें आठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है।

इस मेले का आयोजन राशि नक्षत्रों के अनुसार किया जाता है। मेले में सबसे पहले स्नान करने का अधिकार ऋषि-मुनियों व साधु-संत को दिया जाता है जिसको पहले, दुसरे और तीसरे चरणों में बाटा जाता है और फिर मेले में आये तीर्थयात्री स्नान करते है।

प्रत्येक स्थल की उत्सव तिथियों की गणना बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की राशियों की स्थिति के विशेष संयोजन के अनुसार पहले से की जाती है।

प्रयागराज में कुंभ मेला
जब हिंदू माह माघ (जनवरी-फरवरी) के दौरान बृहस्पति मेष या वृषभ राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं।

हरिद्वार में कुंभ मेला
जब हिंदू माह चैत्र (मार्च-अप्रैल) के दौरान बृहस्पति कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में होता है।

उज्जैन में कुंभ मेला
जब हिंदू माह वैशाख (अप्रैल-मई) के दौरान बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है, या जब तीनों तुला राशि में होते हैं।

नासिक में कुंभ मेला
जब हिंदू माह भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) के दौरान सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।

 








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