कुरुक्षेत्र युद्ध मे हुई विनाश देख धर्मराज युधिष्ठिर विचलित हुए। बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म भी अपने प्राण त्यागने की प्रतीक्षा करते थे। समय उचित पाकर भगवान वेदव्यास और श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समाकालीन सर्वोच्च ज्ञानी भीष्म से धर्म व नीति के विषय मे उपदेश लेने की प्रेरणा दी। अपने सभी भाई समेत कृष्ण को साथ लिए युधिष्ठिर पितामह भीष्म के पास पहुँच कर उनका नमन किया और धर्म व नीति के विषय मे विचार करते किए प्रश्न व भीष्म का विवरण सहित उत्तर ही यह सहस्रनाम स्तोत्र है।
इसमें सर्वप्रथम गणेश, विष्वक्सेन, वेदव्यास तथा विष्णु का नमन किया जाता है।
इसके उपरान्त फिर युधिष्ठिर के प्रश्न है:
किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्।
स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् ॥
सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता कौन है?
संसारी जीवन का लक्ष्य क्या है?
किसकी स्तुति व अर्चन से मानव का कल्याण होता है?
सबसे उत्तम धर्म कौनसा है?
किसके नाम जपने से जीव को संसार के बन्धन से मुक्ति मिलती है?
इसके उत्तर में भीष्मजी ने कहा, "जगत के प्रभु, देवों के देव, अनंत व पुरूषोत्तम विष्णु के सहस्रनाम के जपने से, अचल भक्ति से, स्तुति से, आराधना से, ध्यान से, नमन से मनुष्य को संसार के बंधन से मुक्ति मिलती है। यही सर्वोत्तम धर्म है।"
इसके उपरान्त ऋषि, देवादि संकल्प तथा परमात्मा का ध्यान किया जाता है।