संस्कृत मंत्रों के विशाल खजाने में "स्वस्तिक मन्त्र" शामिल है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। शांति, आशीर्वाद और सद्भाव के लिए एक शक्तिशाली आह्वान के रूप में खड़ा है। इस मंत्र का प्रत्येक श्लोक सुरक्षा, मार्गदर्शन और सद्भाव के लिए प्रार्थना करता है, जिसका समापन शांति के सार्वभौमिक प्रतीक के साथ होता है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
हिंदी अनुवाद:
इंद्र, जिनकी महिमा अत्यंत प्रसिद्ध है, हमें सुख दे। पूषन, जो सबका ज्ञाता है, हमें सुख दे। तरक्ष्य, जल्दी उड़ने वाला बाज हमें सुख दे। बृहस्पति, ज्ञान की देने वाले, हमें सुख दे।
"ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः"
यह श्लोक आशीर्वाद और शांति का आह्वान करता है, विशेष रूप से गरज, बारिश और शक्ति से जुड़े प्राचीन वैदिक देवता इंद्र की ओर निर्देशित है। शब्द "वृद्धश्रवाः" (वृद्धश्रवाः) का अनुवाद "विशाल प्रसिद्धि" या "महान प्रसिद्धि" के रूप में किया जा सकता है, जो समृद्धि, साहस और सम्मान प्रदान करने की इच्छा को दर्शाता है।
"स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।"
यह श्लोक पूषा से आशीर्वाद मांगता है, जो अक्सर सूर्य और सभी के पोषणकर्ता से जुड़ा होता है। पूषा का आह्वान उस व्यक्ति के रूप में किया जाता है जो सब कुछ जानती है और ब्रह्मांड को पोषण प्रदान करती है। प्रार्थना ज्ञान, आत्मज्ञान और जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रचुरता की आकांक्षा व्यक्त करती है।
"स्वस्ति नास्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।"
यहां, प्रार्थना भगवान विष्णु के दिव्य गरुड़ और सवारी तारकस्य (गरुड़) की ओर मुड़ती है, जो अपनी गति और वेग के लिए जाने जाते हैं। शब्द "अरिष्टनेमिः" (अरिष्टनेमिः) उसके शक्तिशाली पंखों या आकाश में तेजी से नेविगेट करने की उसकी क्षमता को संदर्भित कर सकता है। मंत्र बाधाओं और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा चाहता है, नुकसान से मुक्त जीवन की कामना करता है।
"स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु"
यह श्लोक हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) बृहस्पति का आह्वान करता है, जो बुद्धि, ज्ञान और मार्गदर्शन से जुड़े हैं। प्रार्थना में उनसे ज्ञान, समझ और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध किया गया है।
गृह निर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है । इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती है। पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माना जाता है। इससे बच्चा स्वस्थ रहता है, उसकी आयु बढ़ती है और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता है । खेत में बीज डालते समय मंत्र बोला जाता है कि विद्युत् इस अन्न को क्षति न पहुँचाए, अन्न की विपुल उन्नति हो और फसल को कोई कीड़ा न लगे। पशुओं की समृद्धि के लिए भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग होता है जिससे उनमें कोई रोग नहीं फैलता है।
मंत्र शक्तिशाली सार्वभौमिक ध्वनि, "ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥" के साथ समाप्त होता है। (ओम शांति शांति शांति), तीन बार दोहराया गया। शांति का यह आह्वान शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों से गूंजता है। यह शांति, सद्भाव और गड़बड़ी की अनुपस्थिति की इच्छा को समाहित करता है।
इस मंत्र का ईमानदारी से जाप करने से शांति, सुरक्षा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। यह कल्याण, ज्ञान और ब्रह्मांड के साथ सद्भाव के लिए शाश्वत प्रार्थना को समाहित करता है। इसके अर्थों पर ध्यान करके, हम खुद को वैदिक परंपरा के सदियों पुराने ज्ञान के साथ जोड़ते हैं, न केवल अपने लिए बल्कि सभी जीवित प्राणियों के लिए शांति की तलाश करते हैं, और अंततः एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण दुनिया में योगदान करते हैं।