पाताल देवी मंदिर - अल्मोड़ा, उत्तराखंड

महत्वपूर्ण जानकारी

  • पता: पाताल देवी मंदिर, गांव बाल धोती, अल्मोड़ा, उत्तराखंड 263601
  • खुलने और बंद होने का समय: सुबह 06:00 बजे से शाम 07:00 बजे तक
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: काठगोदाम रेलवे स्टेशन जो पाताल देवी मंदिर से लगभग 90.8 किलोमीटर की दूरी पर है।
  • निकटतम हवाई अड्डा: पंतनगर हवाई अड्डा जो पाताल देवी मंदिर से लगभग 118 किलोमीटर की दूरी पर है।
  • क्या आप जानते हैं: मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था।

अल्मोड़ा, उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी, अपने ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इस नगर में आज भी सैकड़ों साल पुराने मंदिर मिलते हैं, जिनमें से एक प्रमुख मंदिर पाताल देवी का है। पाताल देवी क्षेत्र में स्थित यह मंदिर लगभग 250 साल पुराना बताया जाता है और इसे चंद वंश के राजाओं द्वारा 17वीं सदी में बनवाया गया था। यह मंदिर अल्मोड़ा से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और नवदुर्गा, अष्ट भैरव और गणेश मंदिरों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

मां पाताल देवी का मंदिर: ऐतिहासिक महत्व

पाताल देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी चंद्र सिंह चौहान के अनुसार, यह मंदिर बेहद पुराना और महत्वपूर्ण है। वर्तमान में मंदिर के कुछ हिस्सों में टूट-फूट हो रही है, जिसे ठीक करने के लिए सरकार को जीर्णोद्धार प्रस्ताव भेजा गया है। इस मंदिर में एक कुंड भी है जिसे पहले चर्म रोग ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता था, लेकिन अब यह सूख चुका है।

मंदिर के पुजारी खजान चंद पांडे बताते हैं कि यहां श्रद्धालु दूर-दूर से अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं। मंदिर के गर्भगृह में आज भी कई प्राचीन और दुर्लभ मूर्तियां देखी जा सकती हैं। मां पाताल देवी के इस शक्तिपीठ रूप में भक्तों की आस्था अडिग है।

पाताल देवी मंदिर का निर्माण और इतिहास

पाताल देवी मंदिर का निर्माण चंद वंश के राजा दीप चंद के शासनकाल (1748-1777) के दौरान एक वीर सैनिक सुमेर अधिकारी द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर प्राकृतिक रूप से खनन किए गए पत्थरों से बना है और गोरखाओं के शासनकाल के दौरान इसका पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर के गर्भगृह में शक्तिपीठ विराजमान है, और शिखर के बीच में उभरी शिलापट्टिका पर सिंह, गज और नंदी की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

गौरी कुंड और सांस्कृतिक धरोहर

मंदिर के पास स्थित गौरी कुंड, जो कभी जल से भरा रहता था, अब सूख चुका है। यह कुंड भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर संस्कृति निदेशालय द्वारा एक सांस्कृतिक पट्टिका भी लगाई गई है, जिसमें मंदिर के निर्माण और इसके इतिहास की जानकारी दी गई है।

पुरातत्व विभाग की उपेक्षा और पांडे जी की चिंताएँ

मंदिर के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने कुछ प्रयास किए हैं, जैसे कि मंदिर की छत को ध्वस्त होने से बचाने के लिए लोहे के फ्रेम बनाए गए हैं। हालांकि, मंदिर के पुजारी पांडे जी इस उपेक्षा से असंतुष्ट हैं। वे बताते हैं कि स्थानीय शैल गांव के लोग उन्हें तीन हजार रुपये मासिक भत्ता देते हैं, जिससे वह मंदिर की देखभाल करते हैं।

पाताल देवी मंदिर न केवल अल्मोड़ा की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है, बल्कि यह उन श्रद्धालुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है जो यहां अपनी आस्था लेकर आते हैं। मंदिर की ऐतिहासिक संरचना और यहां की धार्मिक मान्यताएं इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती हैं।




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