यमुनोत्री मंदिर - उत्तराखंड

महत्वपूर्ण जानकारी

  • स्थान: उत्तरकाशी, उत्तराखंड 24914, भारत
  • 2023 में मंदिर खुलने की तिथि: यमुनोत्री मंदिर के कपाट शनिवार, 22 अप्रैल 2023 को खुलेंगे।
  • 2023 में मंदिर बंद होने की तिथि: श्री यमुनोत्री धाम भैया दूज के कपाट 14 अक्टूबर के मध्य में अभिजिन मुहूर्त में शीत काल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
  • निकटतम हवाई अड्डा: यमुनोत्री मंदिर से लगभग 199 किलोमीटर की दूरी पर देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा।
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: यमुनोत्री मंदिर से लगभग 212 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन।

यमुनोत्री मंदिर देवी यमुना को पूर्णतः समर्पित है तथा मंदिर में देवी की मूर्ति है जोकि काले रंग के संगमरमर के पत्थर से बनी है। यह मंदिर उत्तरकाशी जिले की राजगढी (बड़कोट) तहसील में 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यमुनोत्री हिन्दुओं का एक पवित्र व तीर्थ स्थान है। यमुना नदी का उद्रम स्थान मंदिर से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर है जहां पर जाना संभव नहीं क्योकि मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है।

इस मंदिर का नाम चार धाम यात्रा में सम्मिलित है। यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम व यात्रा की शुरूआ इस स्थान से होती है तथा ऐसा कहा जा सकता है कि चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव है। यमुनोत्री मंदिर भुकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है जिसका पुनः निर्माण किया गया था और इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी किया गया था।

हनुमान चट्टी (2400मीटर) यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है तथा इस स्थान से मंदिर की दूरी 13 किलोमीटर है। इसके बाद नारद चट्टी, फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है। मंदिर तक की यात्रा पैदल चल कर अथवा टट्टुओं पर सवार होकर तय करनी पड़ती है। किन्तु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 कि. मी. दूर रह जाता है। यहां तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए किराए पर पालकी तथा कुली भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। इन चट्टीयों मे सबसे महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है, क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं। कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। 1946 में एक धार्मिक महिला जिसका नाम जानकी देवी था, ने बीफ गाँव मे यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी, और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यमुनोत्तरी से कुछ दूर पहले भैंरोघाटी है। जहाँ भैंरो बाबा का मन्दिर है।

यमुनोत्तरी का हिन्दुओं के वेद-पुराणों में भी वर्णन किया गया है जैसे कूर्मपुराण, केदारखण्ड, ऋग्वेद, ब्रह्मांड पुराण मे तो यमुनोत्तरी को ‘‘यमुना प्रभव’’ तीर्थ कहा गया है। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा मे आए तो वे पहले यमुनोत्तरी, तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है।
यमुनोत्तरी मंदिर का मुख्य आर्कषण यह के कुण्ड है तप्तकुण्उ व सूर्यकुण्ड। सूर्यकुण्ड जो कि गढवाल के सबसे गरम कुण्डों में से एक है तथा इस कुण्ड के पानी का तापमान लगभग 195 डिग्री फारनहाइट है। इस कुण्ड से विशेष ध्वनि निकलती है, जिसे ‘‘ओम ध्वनि’’ कहा जाता है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं। सूर्यकुण्ड का जल नीचे बह कर गौरीकुण्ड में जाता है और इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था, इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है। गौरीकुण्ड में जल आ थोड़ा ठण्डा हो जाता है, जिससे यात्री इस कुण्ड में स्नान कर सकते है।

प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी यमुना देवी के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु व तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री का पतित पावन मंदिर अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है। क्योकि भारी बर्फबारी की वजह से सर्दियों के दौरान यह मंदिर बंद रहता है।




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