आश्विन मास की अमावस्या ही पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से विख्यात है। पितृ विसर्जन अमावस्या हिंदुओं का धार्मिक कार्यक्रम है जिसे प्रत्येक घर में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करने के लिए एक धार्मिक कार्य क्रम का आयोजन होता है। भारतीय संस्कृति में और हिन्दू धर्म में अपने से बड़ों के प्रति आदर एवम श्रद्धा का भाव पाया जाता है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन तथा दान देने से पित तृप्त हो जाते हैं तथा वे अपने पुत्रों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है या पितरों की तिथि ज्ञात होने पर भी यदि समय पर किसी कारण से श्राद्ध न हो पाए, तो उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या को कर देने से पितर सन्तुष्ट हो जाते हैं। जिनकी अकल मृत्यु हो गई हो उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या के दिन किया जा सकता है।
यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है। अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है।
इस पर्व को पितृ पक्ष का समापन पर्व भी कहते हैं। इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है। पितृ विसर्जन अमावस्या का श्राद्ध पर्व किसी नदी, या सरोवर के तट पर या निजी आवास में भी हो सकता है।