चितई गोलू देवता मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित है और यह गोलू देवता को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अल्मोड़ा जिले के चितई गांव में स्थित है और बिनसर वन्यजीव अभयारण्य के मुख्य द्वार से लगभग 4 किलोमीटर और अल्मोड़ा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गोलू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है, और उनकी उपासना में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
गोलू दरबार की परंपरा: गोलू देवता के प्रति लोगों की आस्था और श्रद्धा इतनी गहरी है कि लोग उन्हें अपने न्याय और समस्याओं के समाधान के लिए याद करते हैं। मान्यता है कि गोलू देवता अपने सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर अपने राज्य की यात्रा करते थे और लोगों की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करते थे। इसे गोलू दरबार कहा जाता था। यहाँ तक कि आज भी गोलू दरबार की प्रथा उत्तराखंड के कई गांवों में प्रचलित है। इसके अंतर्गत गोलू देवता लोगों के समक्ष प्रकट होते हैं, उनकी समस्याओं को सुनते हैं, और हर संभव तरीके से उनकी मदद करते हैं।
भक्तों की मान्यताएँ और गोलू देवता का महत्व: गोलू देवता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था इतनी अधिक है कि वे मंदिर में अपनी याचिकाएँ लिखकर अर्पित करते हैं। यह माना जाता है कि गोलू देवता जल्दी ही न्याय प्रदान करते हैं और भक्तों की समस्याओं का समाधान करते हैं। यही वजह है कि चितई मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों याचिकाएँ पत्र के रूप में दीवारों पर लटकी हुई देखी जा सकती हैं।
गोलू देवता की जन्म कथा: गोलू देवता के जन्म और उनकी उत्पत्ति से संबंधित कई कहानियाँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार एक राजा शिकार के लिए जंगल में गया था और उसने अपने नौकरों को पानी की तलाश में भेजा। उन नौकरों ने एक महिला को परेशान किया, जो प्रार्थना कर रही थी। महिला ने गुस्से में राजा को ताना मारा कि वह दो लड़ते हुए सांडों को अलग नहीं कर सकता और खुद ऐसा करने लगी। राजा इस कार्य से बहुत प्रभावित हुआ और उस महिला से विवाह कर लिया। जब महिला ने एक पुत्र को जन्म दिया, तो ईर्ष्यालु रानियों ने उस बच्चे की जगह पत्थर रख दिया और उसे पिंजरे में बंद कर नदी में फेंक दिया। लेकिन उस बच्चे का पालन-पोषण एक मछुआरे ने किया।
जब बच्चा बड़ा हुआ, तो वह लकड़ी के घोड़े पर सवार होकर नदी पर आया। रानियों ने उससे पूछा कि वह क्या कर रहा है। उसने जवाब दिया कि अगर महिलाएँ पत्थर को जन्म दे सकती हैं, तो लकड़ी के घोड़े पानी पी सकते हैं। यह सुनकर राजा को सच्चाई का पता चला। इसके बाद राजा ने ईर्ष्यालु रानियों को दंडित किया और उस लड़के को अपना उत्तराधिकारी बना लिया। यह लड़का ही आगे चलकर गोलू देवता के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
महाशिवरात्रि और गोलू देवता: महाशिवरात्रि का पर्व चितई गोलू देवता मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय पर दूर-दूर से श्रद्धालु आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर आते हैं। इस दौरान विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
गोलू देवता की पूजा विधि और प्रसाद: गोलू देवता को खासतौर पर सफेद कपड़े, सफेद पगड़ी और सफेद शाल चढ़ाए जाते हैं। उनके प्रिय प्रसाद के रूप में घी, दूध, दही, हलवा, पूरी और पकौड़ी अर्पित की जाती है। उनके भक्त इस विश्वास के साथ इन चीज़ों को अर्पित करते हैं कि इससे उनकी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।
गोलू देवता का महत्व और प्रभाव: गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और उनके प्रति लोगों की आस्था बहुत गहरी है। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों के अलावा अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। उनके भक्तों का विश्वास है कि गोलू देवता न्यायप्रिय देवता हैं और किसी भी प्रकार की अन्यायपूर्ण स्थिति में उनके दरबार में याचिका प्रस्तुत करने से न्याय अवश्य मिलता है।
चितई गोलू देवता मंदिर और उसकी मान्यताएँ कुमाऊं की संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गोलू देवता की उपासना से जुड़ी यह धरोहर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।