हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते है। इस एकादशी के व्रत में भगवान नारायण की मूर्ति को गंगा जल से स्नान करा कर प्रसाद का भोग लगाकर, पुष्प और दीपक से आरती की जाती है।
योगिनी एकादशी व्रत में गरीब ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इस व्रत के करने से पीपल के वृक्ष को काटने से जो पाप लगता है उसका विनाश हो जाता है और स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण ने कहा- यह योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है।
यह व्रत नर एवं नारियों दोनों को करना चाहिए। भगवान नारायाण की मूर्ति को गंगा जल से स्नान करना चाहिए। पुष्प, धुप और दीपक से पूजा व आरती करनी चाहिए। पूजा स्वयं या पण्डित द्वारा भी करवा सकते है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि पीपल के पेड़ में नारायाण का वास होता है।
प्राचीन काल में धन कुबेर के यहाँ एक माली था जिसका नाम हेम था। वह प्रतिदिन भगवान शंकर की पूजा हेतु मानसरोवर से फूल लाता था। एक दिन वह अपनी स्त्री के साथ कामोन्मत होकर विहार कर रहा था। इस प्रकार उसे फूल लाने में देरी हो गई। कुबेर ने क्रोध में हेम को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। कुबेर के श्राप से वह कोढ़ी बन गया। इस रूप में वह घूमता हुआ मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम मे पहुँचा। मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने का उपदेश दिया। व्रत के प्रभाव से हेम स्वस्थ हो गया तथा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्ग को चला गया।
2025 में योगिनी एकादशी 22 जून, रविवार को है।
योगिनी एकादशी हिन्दू महीना आषढ़ के कृष्ण पक्ष में आती है.