अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि - माँ भवानी का शरणागत स्तोत्र

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥

यह श्लोक माँ भवानी की स्तुति में एक प्रार्थना है, जिसमें भक्त माँ भवानी से हर परिस्थिति में उनकी रक्षा और मार्गदर्शन की प्रार्थना करता है। यह श्लोक दिखाता है कि माँ भवानी संकट के समय एकमात्र सहारा और आश्रय हैं।

श्लोक का अर्थ

अरण्ये शरण्ये: "जंगल में शरण देने वाली" – माँ भवानी की वह शक्ति, जो जंगल जैसी कठिन परिस्थितियों में भी भक्तों की रक्षा करती है।
सदा मां प्रपाहि: "हमेशा मेरी रक्षा करें" – माँ भवानी से यह निवेदन कि वे सदा अपने भक्तों की रक्षा करें।
गतिस्त्वं गतिस्त्वं: "आप ही मेरी राह हैं, आप ही मेरी राह हैं" – इसका अर्थ है कि माँ भवानी ही भक्तों के लिए हर परिस्थिति में एकमात्र सहारा और मार्गदर्शिका हैं।
त्वमेका भवानि: "आप ही अकेली हैं, माँ भवानी" – माँ भवानी की महिमा का गुणगान करते हुए उन्हें ही एकमात्र आश्रय बताया गया है।

इस श्लोक की महिमा

श्लोक में माँ भवानी को जीवन के सभी संघर्षों और कठिनाइयों में एकमात्र सहारा माना गया है। चाहे विवाद हो, विषाद हो, प्रवास में हों, या जंगल में खोए हुए हों, माँ भवानी का स्मरण करते ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि माँ भवानी उनकी हर परिस्थिति में रक्षा करेंगी और उन्हें सही मार्ग दिखाएँगी।

पर्व और पूजा की विधि

माँ भवानी की आराधना के लिए विशेष पर्वों पर पारंपरिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है। इनमें मुख्य रूप से मंत्रों का जाप, दीया या छोटे दीपक जलाना और देवी की प्रार्थना करना शामिल है। भक्त उपवास रखते हैं और माता की आराधना के लिए विशेष पूजा और धार्मिक समारोह करते हैं। इन अनुष्ठानों के माध्यम से भक्त माँ भवानी की कृपा पाने का प्रयास करते हैं और उनसे सुरक्षा, सुख और शांति की प्रार्थना करते हैं।









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