इदानीं खलु मे देव। बगला-हृदयं प्रभो।
कथयस्व महा-देव। यद्यहं तव वल्लभा ।।1।।
साधु साधु महा-प्राज्ञे।सर्व-तन्त्रार्थ-साधिके।
ब्रह्मास्त्र-देवतायाश्च, हृदयं वच्मि तत्त्वतः ।।2।।
गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वर्ण-कान्ति-सम-प्रभाम् ।
चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम् ।।1।।
ऊर्ध्व-केश-जटा-जूटां, कराल-वदनाम्बुजाम् ।
मुद्गरं दक्षिणे हस्ते, पाशं वामेन धारिणीम् ।।2।।
रिपोर्जिह्वां त्रिशूलं च, पीत-गन्धानुलेपनाम् ।
पीताम्बर-धरां सान्द्र-दृढ़-पीन-पयोधराम् ।।3।।
हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् ।
पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।4।।
स्वानन्दानु-मयी देवी, सिपु-स्तम्भन-कारिणी ।
मदनस्य रतेश्चापि, प्रीति-स्तम्भन-कारिणी ।।5।।
महा-विद्या महा-माया, महा-मेधा महा-शिवा ।
महा-मोहा महा-सूक्ष्मा, साधकस्य वर-प्रदा ।।6।।
राजसी सात्त्विकी सत्या, तामसी तैजसी स्मृता ।
तस्याः स्मरण-मात्रेण, त्रैलोक्यं स्तम्भयेत् क्षणात् ।।7।।
गणेशो वटुकश्चैव, योगिन्यः क्षेत्र-पालकः ।
गुरवश्च गुणास्तिस्त्रो, बगला स्तम्भिनी तथा ।।8।।
जृम्भिणी मोदिनी चाम्बा, बालिका भूधरा तथा ।
कलुषा करुणा धात्री, काल-कर्षिणिका परा ।।9।।
भ्रामरी मन्द-गमना, भगस्था चैव भासिका ।
ब्राह्मी माहेश्वरी चैव, कौमारी वैष्णवी रमा ।।10।।
वाराही च तथेन्द्राणी, चामुण्डा भैरवाष्टकम् ।
सुभगा प्रथमा प्रोक्ता, द्वितीया भग-मालिनी ।।11।।
भग-वाहा तृतीया तु, भग-सिद्धाऽब्धि-मध्यगा ।
भगस्य पातिनी पश्चात्, भग-मालिनी षष्ठिका ।।12।।
उड्डीयान-पीठ-निलया, जालन्धर-पीठ-संस्थिता ।
काम-रुपं तथा संस्था, देवी-त्रितयमेव च ।।13।।
सिद्धौघा मानवौघाश्च, दिव्यौघा गुरवः क्रमात् ।
क्रोधिनी जृम्भिणी चैव, देव्याश्चोभय पार्श्वयोः ।।14।।
पूज्यास्त्रिपुर-नाथश्च, योनि-मध्येऽम्बिका-युतः ।
स्तम्भिनी या मह-विद्या, सत्यं सत्यं वरानने ।।15।।
एषा सा वैष्णवी माया, विद्यां यत्नेन गोपयेत् ।
ब्रह्मास्त्र-देवतायाश्च, हृदयं परि-कीर्तितम् ।।1।।
ब्रह्मास्त्रं त्रिषु लोकेषु, दुष्प्राप्यं त्रिदशैरपि ।
गोपनीयं प्रत्यनेन, न देयं यस्य कस्यचित् ।।2।।
गुरु-भक्ताय दातव्यं, वत्सरं दुःखिताय वै ।
मातु-पितृ-रतो यस्तु, सर्व-ज्ञान-परायणः ।।3।।
तस्मै देयमिदं देवि ! बगला-हृदयं परम् ।
सर्वार्थ-साधकं दिव्यं, पठनाद् भोग-मोक्षदम् ।।4।।
हृदय मंत्र देवता पूजा का सार है, और इसका जाप करने से देवता के साथ संबंध मजबूत होता है, जिससे अक्सर दिव्य दर्शन होते हैं। इस मंत्र का जाप अपने गुरु के मार्गदर्शन में शुरू करने की सलाह दी जाती है। नए साधकों को हृदय स्तोत्र का पाठ करते रहना चाहिए।
इस पूजा में आकाशीय पिंडों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने की क्षमता है। यह बाधाओं को दूर करने, संघर्षों को हल करने, प्रतियोगिताओं और परीक्षाओं में सफल होने, आधिकारिक मामलों में पक्ष पाने, असाध्य रोगों को ठीक करने, अचानक आने वाली आपदाओं को रोकने और ग्रह संबंधी पीड़ाओं को कम करने में मदद कर सकता है। देवी बगलामुखी की पूजा, चाहे यंत्रों, मंत्रों या अनुष्ठानों के माध्यम से की जाए, चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न कर सकती है।
हृदय भजन भगवती बगलामुखी को समर्पित है और उनकी दिव्य उपस्थिति के साथ गहरा संबंध स्थापित करने के लिए है। हालाँकि उसके हृदय में निवास करना एक सपना ही रह सकता है, भक्ति का प्रसाद आध्यात्मिक प्रगति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
बगला ह्रदय स्तोत्र को माँ का हृदय माना जाता है और यह अपने अनुयायियों को इस दुनिया में वांछित आशीर्वाद प्रदान करता है। यह देवी बगलामुखी/पीतांबरा से जुड़ा है और इसका उद्देश्य मां बगलामुखी के साथ घनिष्ठ संबंध को बढ़ावा देना है।