छिन्नमस्तिक मंदिर

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Location: Rajrappa Road, Rajrappa, Jharkhand 829110
  • Timings: Winter - Open 05:30 am and Close 09:30 pm
  • Summer - Open 04:00 am and Close 10:00 pm
  • During the Aarti, the Temple remains closed for a short duration.
  • Best time to visit : October to March.
  • Nearest Railway Station : Ramgarh Cantonment railway station at a distance of nearly 27.6 kilometres from Chhinnamasta Temple.
  • Nearest Airport : Birsa Munda Airport at a distance of nearly 70.3 kilometres from Chhinnamasta Temple.
  • Major festivals: Makar Sankranti, Maha Shivaratri, Vijayadashami, Durga Puja and Navaratri.

छिन्नमस्तिक मंदिर एक हिन्दू तीर्थस्थल है जो कि भारत के राज्ये झारखंड के रामगढ़ जिले में रजरप्पा में स्थित है। इस मंदिर मुख्य देवी माता छिन्नमस्तिक है जो कि माता पार्वती का एक रूप है। छिन्नमस्तिक को चिन्नमस्तिक भी कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का दूसरा नाम ‘प्रचण्ड चण्डिका’ भी कहा जाता है। इस मंदिर में माता की बिना सर वाली देवी का पूजा की जाती है। यह मंदिर रजरप्पा में भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है। मंदिर के चारों ओर जंगल से धिरा हुआ है जिसके कारण मंदिर की शोभा बड जाती है। छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा, यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं।

मंदिर में देवी की मूर्ति उनके डरावनी प्रतीकात्मकता के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। खुले बाल, जिह्या बाहर, आभूषणों से सजी माँ नग्नावस्था में हैं। आत्म-निर्णायक देवी के एक हाथ में अपना खुद का कटा सर और दूसरे हाथ में तालवार है। उनकी गर्दन से रक्त की तीन धारा निकल रही है जिसमे एक धारा उनके खुद के कटे सर से रक्तपान कर रही है अन्य दो धारायें उनके पास खड़ी दो देविया ‘डाकिनी’ और ‘शाकिनी’ रक्तपान कर रही है।

ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण लगभग 6 हजार से पहले किया गया था। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के हिसाब से किया गया है। इसके गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के ‘कामाख्या मंदिर’ के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। सामने बलि स्थान है, जहाँ रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहाँ मुंडन कुंड भी है। पापनाशिनी कुंड भी है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त करता है।

हजारों साल पहले राक्षसों एवं दैत्यों ने धारती पर आतक मचा रखा था। जिसके कारण मानव ने माँ शाक्ति को याद करने लगे। तब पार्वती माता ने अपने ‘छिन्नमस्तिक के रूप धारण किया।

फिर माँ छिन्नमस्तिका खड़ग से राक्षसों-दैत्यों का संहार करने लगीं। यहां तक कि भूख-प्यास का भी ख्याल नहीं रहा, सिर्फ पापियों का नाश करना चाहती थीं। माँ अपना प्रचण्ड रूप धारण कर कर चुकी थीं। पापियों के अलावा निर्दोषों का भी वध करने लगीं। तब सभी देवता प्रचण्ड शक्ति से घबड़ाकर भगवान शिव के पास गये और शिव से प्रार्थना करने लगे कि माँ छिन्नमस्तिका का प्रचण्ड रूप को रोकें, नहीं तो पृथ्वी पर उथल-पुथल हो जायेगी।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव माँ छिन्नमस्तिका के पास पहुंचे। माँ छिन्नमस्तिका भगवान शिव को देखकर बोली- ‘हे नाथ! मुझे भूख सता रही है। अपनी भूख कैसे मिटाऊं?’ भगवान शिव ने कहा कि- ‘आप पूरे ब्रह्माण्ड की देवी हैं। आप तो खुद एक शक्ति हैं। तब भगवान शिव ने उपाय बताया कि आप अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर निकलते हुए ‘शोनित’ (रक्त) को पान करें तो आपकी भूख मिट जायेगी। तब माँ छिन्नमस्तिका ने शिव की बात सुनकर तुरंत अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर सिर को बाएं हाथ में ले लिया। गर्दन और सिर अलग हो जाने से गर्दन से खून की तीन धाराएं निकलीं, जो बाएं-दाएं ‘डाकिनी’-‘शाकिनी’ थीं। दो धाराएं उन दोनों की मुख में चली गयीं तथा बीच में तीसरी धारा माँ के मुख में चली गयी, जिससे माँ तृप्त हो गयीं।

छिन्नमस्तिक मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा व नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। नवरात्रि के मौके पर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन हेतु आते हैं।











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