शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहला स्वरूप है। इसलिए शैलपुत्री देवी को दुर्गा को प्रथम अवतार या प्रथम दुर्गा कहा जाता है। शैलपुत्री का अर्थ पहाडों की पुत्री होता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ’शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्री के त्योहार के पहले दिन में शैलपुत्री देवी की पूजा और उपासाना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ’मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
शैलपुत्री माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब इनका नाम ’सती’ था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
शैलपुत्री देवी को हेमवती भी कहा जाता है। उपनिषदों के अनुसार, देवी पार्वती ने विभिन्न देवताओं के घमंड को चूर किया था। इस पर देवताओं ने सर्वसम्मति से उन्हें ’शक्ति’ के रूप में स्वीकार किया।
शैलपुत्री उन सभी भक्तों का ध्यान रखती हैं, जो योग, साधना, तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। खासतौर पर पर्वतीय इलाकों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पूर्वान्चल, नेपाल आदि में इनकी पूजा की जाती है।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम् ।
वृषारूढाम् शूलधराम् शैलपुत्रीम् यशस्विनीम् ॥
अर्थ : मैं अपनी वंदना/श्रद्धांजलि देवी मां शैला-पुत्री को देता हूं, जो भक्तों को सर्वोत्तम वरदान देती हैं। अर्धचंद्राकार चंद्रमा उनके माथे पर मुकुट के रूप में सुशोभित है। वह बैल पर सवार है। वह अपने हाथ में एक भाला रखती है। वह यशस्विनी हैं - प्रसिद्ध माँ दुर्गा।