भद्रकाली विश्वमाता जगत्स्रोतकारिणी
शिवपत्नी पापहर्त्री सर्वभूत तारिणी
स्कन्दमाता शिवा शिवा सर्वसृष्टि धारिणी
नमः नमः महामाया ! हिमालय-नन्दिनी ॥ १॥
नारीणां च शंखिन्यापि हस्तिनी वा चित्रिणी
पद्मगन्धा पुष्परूपा सम्मोहिनी पद्मिनी
मातृ -पुत्री- भग्नि -भार्या सर्वरूपा भवानी
नमः नमः महामाया ! भवभय-खण्डिनी ॥ २॥
पाप- ताप- भव- भय भूतेश्वरी कामिनी
तव-कृपा- सर्व-क्षय सर्वजना -वन्दिनी
प्रेम- प्रीति -लज्जा- न्याय नारीणां च मोहिनी
नमः नमः महामाया ! ॠण्डमाला -धारिणी ॥ ३॥
खड्ग -चक्र -हस्तेधारी शङ्खिनी- सुनादिनी
सम्मोहना -रूपा- नारी हृदय-विदारिणी
अहंकार- कामरूपा- भुवन-विलासिनी
नमः नमः महामाया ! जगत-प्रकाशिनी ॥ ४॥
लह्व -लह्व- तव -जिह्वा पापासुर मर्दिनी
खण्ड- गण्ड- मुण्ड -स्पृहा शोभाकान्ति वर्धिनी
अङ्ग- भङ्ग -रङ्ग -काया मायाछन्द छन्दिनी
नमः नमः महामाया ! दुःखशोक नाशिनी ॥ ५॥
धन- जन- तन -मान रूपेण त्वमं संस्थिता
काम -क्रोध- लोभ -मोह मद वापि मूढता
निद्राहार -काम -भय पशुतुल्य जीवनात्
नमः नमः महामाया ! कुरु मुक्त बन्धनात् ॥ ६॥
मैत्री -दया -लक्ष्मी -वृत्ति- अन्ते जीव लक्षणा
लज्जा-छाया-तृष्णा-क्षुधा बन्धनस्य-श कारणा
तुष्टि-बुद्धि-श्रद्धा-भक्ति सदा मुक्ति दायिका
शान्ति-भ्रान्ति-क्लान्ति-क्षान्ति तव रूपा अनेका
प्रीति-स्मृति-जाति-शक्ति-रूपा माया अभेद्या
नमः नमः महामाया ! नमस्त्वं महाविद्या ॥ ७॥
नवदुर्गा महाकाली सर्वाङ्गभूषावृत्तां
भुवनेश्वरी -मातङ्गी हन्तु मधुकैटभं
विमला तारा षोड़शी हस्ते खड्ग धारिणी
धुमावति -मा -बगला महिषासुर मर्दिनी
बालात्रिपुरसुन्दरी त्रिभुवन मोहिनी
नमः नमः महामाया ! सर्वदुःख हारिणी ॥ ८॥
मम माता लोके मर्त्त्य कृष्णदासः तव भृत्त्य
यदा तदा यथा तथा माया छिन्न मोक्षकथा
सदा सदा तव भिक्षा कृपा दीने भव रक्षा
नमः नमः महामाया कृष्णदासे तव दया ॥ ०॥
||इति श्री कृष्णदासः विरचितं महामाय़ा अष्टकम् य: पठति सः भव सागर निस्तरति||
प्रतिदिन महामाया अष्टकम का पाठ करने से अपार आशीर्वाद मिलता है, घरेलू और कार्यस्थल की चुनौतियों से राहत मिलती है। यह संतुलन बहाल करने, वित्तीय, शारीरिक और मानसिक संघर्षों को कम करने में मदद करता है। इस शक्तिशाली भजन की भक्ति करियर में उन्नति, पदोन्नति हासिल करने और व्यावसायिक कठिनाइयों पर काबू पाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। नियमित जप से व्यक्ति गहन आध्यात्मिक और भौतिक सद्भाव का अनुभव कर सकता है।
शुभ काली देवी मां भद्रकाली,विश्व की माता,जगत रूपी स्रोत का आप कारण हो। शिव पत्नी पापों को हरनेवाली, और सभी प्राणियों की रक्षक, सारे भूतों को तारनेवाली, स्कंद की माता, हे शिवा ब्रह्मांड के समर्थक,आप सारी सृष्टि को धारण किये है, हे हिमालय की पुत्री महामाया आपको वंदन ही,नमन है। ।।१।।
नारीओ में, हाथो के सुरम्य कमल-सुगंधित फूल-समान,आप ही संखिनी,हस्तिनी, चित्रिणी, पद्म की गंधस्वरूपा,सब को मोहनेवाली पद्मिनी का रुप लेते हो। हे सर्व व्यापी माँ- भवानी आप ही माता बेटी-बहन-पत्नी के रूप में प्रकट होती हो। हे भवसागर के भय को खंडित करने वाली महान शक्ति महामाया आपको वंदन है,नमन है। ।।२।।
हे भूतेश्वरी, ही कामिनी, हे सर्वजन की वंदिनी, आप की कृपा से पाप-मानसिक या शारीरिक पीड़ा-भय- भय सब क्षय हो जाता है। नारी के रुप में सबको मोहनेवाली, प्रेम, स्नेह, लज्जा, न्याय के रुप में प्रकट होनेवाली, रुण्डमाला धारण करनेवाली हे महामाया !
आपको वंदन है,नमन है। ।।३।।
हस्त में खड़ग, चक्र धारण करनेवाली,शंख धारण करनेवाली, नाद स्वरूपा,सबका सम्ममोहन करनेवाली,नारी के रुप में हृदय को छिन्न-भिन्न करने वाली,जोड़ने और तोड़ने वाली- विदार करनेवाली, अहंकार- और कामनाओं के रुप में जगत में विलास करनेवाली,इस जगत को प्रकाश देनेवाली हे महामाया आपको वंदन हे,नमन हे। ।।४।।
हे मां। आपकी जिह्वा बाहर निकल के पापी असुरो का लहू अपनी जिह्वा से पी के मर्दन करनेवाली, असुरो का विनाश करते हुए खंड मुंड का माला आपकी शोभाका बर्धन(बढ़ता) कर रही है। और आपके सौंदर्य और चमक को बढ़ाती है,
आप ही संसार में अपने अंग की भंगिमा और अपने रंग से सबको माया के छंद में छंदने वाली है,और दु:ख शोक का नाश करनेवाली, हे महामाया आपको वंदन हे, नमन है। ।।५।।
आप धन, लोक, शरीर और मान के रूप में स्थित हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह और नशा आदि मूढ़ता में रेहेके निशा,आहार, कामना, भय, ये सब पशु प्रवृति मे लिप्त होके, जीवन में बंधने वाली, कृपा करके ऐसे बंधनों से मुक्त करिए। हे महामाया आपको वंदन हे, नमन हे। ।।६।।
मित्रता, दया, धन, वृत्ति, जीव में ये सब लगाव उत्पन्न करनेवाली और लज्जा, छाया, प्यास और भूख जो बंधन के कारण है,संतोष, बुद्धि, श्रद्धा और भक्ति जो की सदा मुक्ति का कारण है, शांति, भ्रम, थकान,क्षमा ऐसे आदि अनेक भिन्न भिन्न अवस्था जो मुक्त करती है, फिर प्रेम, स्मृति, जाति,शक्ति आदि अभेद्य भिन्न भिन्न रुप में सभी आपका ही रुप है। हे महाविद्या, हे महामाया आपको वंदन हे,नमन है। ।।७।।
सर्वांग में भूषण पहननेवाली हे नवदुर्गा, महाकाली मधुकैटभ का वध करनेवाली,हस्त में खड़ग धारण करनेवाली, महिषासुर का वध करनेवाली, त्रिभुवन को मोहनेवाली, मां भुवनेश्वरी,मातंगी, विमला तारा, षोडशी, धुमावती, बगला, बालात्रिपुरसुंदरी, सब दुःख हरनेवाली, हे महामाया आपको वंदन है,नमन है।
हे ।।८।।
हे मेरी माँ। इस मृत्युलोक में कृष्णदास आपका सेवक है, दास है,जो की हर जगह, हर प्रकार में माया को छिन्न भिन्न करके मोक्ष्य पाने का चिंतन करता है,ये दीन भिक्षा प्रार्थी हे की हे मां आप दया करके इस भवसागर से रक्षा कर दीजीए और कृष्णदास पे आपकी दया ऐसे ही बनी रहे। हे महामाया, आपको वंदन हे,आपको बारंबार नमन है।।।९ ।।
जो कृष्णदास द्वारा रचित इस महामाया अष्टकम का निष्काम भाव से पाठ करता है, वह भव के सागर से पार हो जायेगा।