शंख को जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है। भगवान विष्णु का तो यह अत्यंत प्रिय है, यही वजह है कि जहां कहीं भी भगवान श्री नारायण की पूजा होती है, वहां शंखनाद जरूर होता है।
समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक शंख भी है। सनातन परंपरा में होने वाली पूजा में शंख का अत्यधिक महत्व है। हिंदू धर्म में लगभग सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथों में शंख धारण किया है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, धन के देवता कुबेर के पास आठ शुभ रत्न थे, और उनमें से एक शंखनिधि थी।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, भगवान कृष्ण, जो पांडव राजकुमार और महाकाव्य के नायक अर्जुन के सारथी थे, युद्ध की घोषणा करने के लिए पंचजन्य शंख का नाद करते हैं। संस्कृत में पंचजन्य का अर्थ है 'पाँच वर्गों के प्राणियों पर नियंत्रण रखना'। सभी पाँच पांडव भाइयों के पास अपने-अपने शंख होने का वर्णन मिलता है। युधिष्ठिर के पास अनंत-विजय, भीम के पास पौंड्र-खड्ग, अर्जुन के पास देवदत्त, नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणि-पुष्पक नामक शंख थे।
शंख हमारे जीवन से जुड़ी पवित्र वस्तु है जो उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है। यह माना जाता है कि शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव से हुई थी। कहते हैं कि शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था।
प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपनी पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं। श्रीहरि का प्रिय वाद्य यंत्र किसी साधक की मनोकामना को पूर्ण करके उसके जीवन को सुखमय बनाता है। मान्यता है कि शंख बजाने से जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाते हैं। शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है।
घर में नया शंख लाने के बाद सबसे पहले उसे किसी साफ बर्तन में रख लें। फिर उसे अच्छी तरह से जल से साफ कर लें। इसके बाद उसे गाय के कच्चे दूध से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद शंख को साफ कपड़े से पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप आदि से पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से निवेदन करें कि वे इस शंख में निवास करें। शुभ फलों की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन पूजा करने से पहले इसी तरह शंख की पूजा करके ही बजाएं।
शंख समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के साथ ही उत्पन्न हुआ था। ऐसे में शंख को माता लक्ष्मी का भाई माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां माता लक्ष्मी का सदैव वास होता है। दक्षिणावर्ती शंख को देवता समान माना गया है। इसे पूजा घर में रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है। शंख को हमेशा पूजा स्थान पर जल भरकर रखना चाहिए। शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। घर में सुबह-शाम शंख बजाने से भूत-प्रेत की बाधा भी दूर होती है।
शंख का उपयोग आयुर्वेद औषधीय योगों में कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। शंख का आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व तो है ही, साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है। शंख में रात भर रखा पानी पीने से पीलिया, हड्डियाँ, दाँत, पेट की समस्या जैसी कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और सल्फर होता है। शंख बजाने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें शरीर में चक्रों को संतुलित करती हैं।
शंख से उत्पन्न होने वाले कंपन हवा को शुद्ध करते हैं और यह वातावरण में रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं को नष्ट करने में मदद करता है। यह फेफड़ों की अच्छी क्षमता विकसित करने में मदद करता है। शंख बजाने से थायरॉयड, गर्दन की मांसपेशियों और स्वर रज्जु पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।