अम्बाजी शक्ति पीठ हिन्दूओं के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर भारत के राज्य गुजरात में अरासुर पर्वत पर स्थित है। यह पालनपुर से लगभग 65 किलोमीटर, माउंट आबू से 45 किलोमीटर, और अबू रोड से 20 किलोमीटर और अहमदाबाद से 185 किलोमीटर, गुजरात और राजस्थान सीमा के पास कडियाद्रा से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अम्बाजी शक्ति पीठ ‘अरासुरी अम्बाजी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह सांस्कृतिक की विरासत स्थल है जो अपने ऐतिहासिक और पौराणिक संबंधों के लिए जाना जाता है।
अम्बाजी मंदिर के मुख्य विशेषता यह है कि, इस मंदिर कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। इस मंदिर में ‘श्रीयंत्र’ की पूजा की जाती है। इस यंत्र को ही मंदिर के मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता है तथा इस यंत्र को कोई भी व्यक्ति सीधे आंखों से नहीं देख सकता है। इस मंदिर में श्रीयंत्र के सामने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित रहती है।
माना जाता है कि यह मंदिर बारह सौ वर्ष से अधिक प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण वल्लभी शासक, सूर्यवंश सम्राट अरुण सेन ने चैथी शताब्दी के दौरान करवाया था। इस मंदिर का पुन निर्माण राज्य सरकार द्वारा किया गया है। मंदिर क पुन निर्माण में सोने का भी प्रयोग किया गया है। मंदिर के शिखर पर 358 सोने के कलश स्थापित है। अम्बाजी का मुख्य शक्ति स्थल कस्बे में स्थित गब्बर पर्वत पर स्थित है। जहां श्रद्वालु 111 सीढ़िया चढ़कर मंदिर तक पहुंचते है। इस स्थान पर हर साल भाद्रवी पूर्णिमा के दिन बडे मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को दीवापली के त्योहार की तरह सजाया जाता है।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को ‘कुमारी’ के रूप पूजा जाता है और शिव को ‘भैरव’ के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती का ‘हदय’ इस स्थान पर गिरा था।
अम्बाजी शक्ति पीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।